हेमन्त पाण्डेय के साथ आदि कैलाश और ओम पर्वत की डॉक्युमेंट्री "35 साल पहले और अब" की शूटिंग सम्पन्न
35 वर्ष बाद पिछले कुछ दिन शूटिंग के दौरान बहुत सी नई पुरानी यादों को ताजा किया । जो नई और सबसे ख़ास बात लगी सड़क मार्ग। सड़क मार्ग ने आदि कैलाश और ॐ पर्वत के प्रति ऐसा विशेष आकर्षण उत्पन्न किया है जिसने स्थानीय युवाओं और महिलाओं को रोजगार उपलब्ध कराए है । इसमें सबसे महती भूमिका प्रधामंत्री मोदी का आदि कैलाश आना रहा। उनके आने से एकाएक पर्यटकों का सैलाब उमड़ पड़ा है।
अभिनेता हेमन्त पाण्डेय ने बताया हमें देखने में आया धारचूला में ही 1000 से अधिक गाड़ियां है जिन्हें वहां के युवा चला रहे है और पूरे मार्ग पर होमस्टे की बहार है जिन्हे अधिकतर महिलाएं संचालित कर रही है । मार्ग में जितने रेस्टोरेंट है अधिकतर महिलाएं संभाल रही है या पति का हाथ बंटा रही है।
निर्देशक हरीश शर्मा ने कहा आधुनिक सुविधाओं ने मेरे जैसे पथारोहियों और पर्यटकों में थोड़ी निराशा उत्पन्न की है । 35 साल पहले जब मैं दो तीन बार इन क्षेत्रों में पैदल गया था तब हरेक गांव के अंदर जा पाया था। रिंगाल के मकान, पनचक्की कालीन बुनती महिलाएं गांव के घरों में रुकना इजा सरीखी बुजुर्ग महिलाओं का प्यार से भोजन कराना। गांव के स्कूलों में अध्यापकों का अधिकतर गायब रहना। सब मुझे याद आता है जिन्हें इस बार नहीं देख मिल पाएं। उस समय गांववासियों से दिक्कतो का पता चलता था।
आप लोग कह सकते है वो तो अभी भी कर सकते है । उसके लिए मेरा मानना है सुविधा भोगी होने के बाद हम मेहनत करने का माद्दा खो बैठते है। ऐसा ही इस बार हमारे साथ हुआ सड़क किनारे बसे मिले गांव वालों से ही हम बात कर पाएं।
तीनों डॉक्युमेंट्री को हिन्दी अंग्रेज़ी और पहली बार किसी फिल्मी अभिनेता हेमन्त पाण्डेय द्वारा कुमाऊनी भाषा में बनाई जा रही है वो प्रस्तोता की भूमिका है। वैसे हमारा प्लान इन डॉक्युमेंट्री को 100 से अधिक भाषाओं में परिवर्तित करने का है ।
आधुनिक सुविधाओं और ए आई ने ऐसा करना आसान किया है। हमारी युवा एडिटर मनिका सिसोदिया इस कार्य को अंजाम देने वाली है। सभी डॉक्युमेंट्री के निर्माता दिल्ली के संदीप झा है उत्तराखण्ड सरकार का सहयोग भी वृतचित्रों में मिल रहा है।
हेमन्त पाण्डेय के अनुसार रास्ते के गांव वालो ने बताया बिजली पानी और कम्युनिकेशन की दिक्कत तो करीब हरेक गांव में है वहीं दूसरी तरफ़ सोलर ऊर्जा देखकर खुशी भी हुई कि कुछ हद तक सोलर ऊर्जा ने बिजली की कमी की भरपाई की है । हमें अच्छा लगा कि लगभग प्रत्येक गांव में प्रधानमंत्री आवासो और शौचालयों का निर्माण हुआ है। जिसका लाभ गरीब गांव वालों को मिला है।
डॉक्युमेंट्री निर्देशक हरीश शर्मा का कहना है 34/35 वर्ष पहले जब पांच साल 1987 से 1992 में पिथौरागढ़ में रहा था पत्रकार के तौर पर उस दौरान मैंने पिथौरागढ़ और दूर दराज़ के तमाम गांव कस्बों में ट्रैकिंग की थी। कभी खुद से कभी प्रशासन के सहयोग से कभी जिलाधिकारी और अन्य अधिकारियों के साथ ।
उद्वेश्य होता था किस तरह से जरूरतमंद गांव वालों को अधिक सुख सुविधा मिल सके। उसी कड़ी में 1990//92 में मैंने मुनस्यारी से मिलम ग्लेशियर छोटा कैलास की यात्रा की थी । उस समय के यात्रा वृतांत मैंने दैनिक जागरण और बाद में दिल्ली प्रवास के दौरान दैनिक हिन्दुस्तान सहित अन्य कई पत्र पत्रिकाओं में प्रकाशित किये थे।
अब 34 साल बाद हम मुख्य रूप से उन्ही स्थानों गांव कस्बों में जाकर तब के और आज के हालात पर चार डॉक्युमेंट्री बना और किताब लिख रहे है।
हरीश शर्मा के अनुसार मैंने 34 साल पहले के उन गांव कस्बों के तमाम फोटो प्रकाशित लेख सहेज कर रखे है शायद इसीलिए भविष्य में कभी कुछ काम आयेंगे। हालंकि उस समय जब हम दूसरी बार मिलम ग्लेशियर गए थे वो ट्रैकिंग कार्यक्रम तात्कालिक जिला अधिकारी राकेश शर्मा के नेतृत्व में पिथौरागढ़ के 20 से अधिक गणमान्य लोग शामिल थे।
पिथौरागढ़ उस समय उत्तर प्रदेश में आता था उत्तराखण्ड बनने के बाद पिथौरागढ़ और दूरदराज के स्थानों में क्या मूल चूल परिवर्तन आए है यह देखना समझना लिखना और वृतचित्र का हिस्सा बनाने रोमांच पैदा किया और हम तब और आज का सच सामने लाने में सफल रहेंगे।
मोटर मार्ग बनने से कहीं कुछ टूटन सी महसूस कर रहा हूं 34 वर्ष पहले की वो पैदल यात्रा चलचित्र की भांति मेरी आंखों के सामने से गुजर रही है।
ऐसा दिल ने सोचा अब यदि दिमाग से सोचता हूं तो लगता है पैदल सिर्फ ट्रैकर ही जा पाते थे कितने, महज़ 400/500 साल में, अब मुझे पता चला पर्यटको या फिलहाल श्रद्धालु कहा जाएं तो बेहतर है की संख्या इस वर्ष 50 हज़ार का आंकड़ा छूने वाली है। लेकिन खुशी है कितना व्यापार बढ़ा होगा स्थानीय लोगों का।
हेमन्त कहते है मुझे लगता है ॐ पर्वत के कच्चे मार्ग को पक्के मार्ग में बदलना जरूरी है पूरा मार्ग बेहद कठिन है इसे एक शब्द में बोले तो ये मार्ग बेहद दुरूहू है। हालांकि मैं सिर्फ सकारात्मक रहता हूं पर सच लिखना आवश्यक है।
आदि कैलाश या कैलास का मोटर मार्ग 60/70% एक दम सटीक है लेकिन जो 40% शेष है वो बहुत ही ख़राब है। आदि कैलास मार्ग में पड़ने वाले स्थान पिथौरागढ़ धारचूला गूंजी नाभि डांग कुटी और ज्योलिकांग में यात्रा से रोजगार व्यापार में खूब बढ़ोत्तरी हुई है ।
लेकिन अन्य 8/10 गांवों और ग्रामीणों में सम्पन्नता लाने के लिए अवसर पैदा करने पड़ेंगे। उन गांवों में ऐसी रोचकता बढ़ानी होगी कि पर्यटक इन स्थानों पर भी रुके। सरकार को जिला प्रशासन को इस पर गौर करना चाहिए।
मोटर मार्ग के बाद भी सरकार को ट्रैकर को बढ़ावा देकर पारम्परिक पैदल मार्ग के लिए विशेष योजनाये बनाने की जरूरत है। जिससे सभी गांवों को लाभ मिल सके।
हरीश कहते है मुझे ध्यान है 34 साल पहले ट्रैकिंग के दौरान मैंने गांव कस्बों का रहन सहन गरीबी सहूलियतों का आभाव, पानी की दिक्कत कही सड़क मार्ग नही। अब मुझे लगता है गांव कस्बों में बसासत बढ़ी है । 34 साल पहले हमने कितने ही गांव देखे थे जिन मकानों में गिने चुने लोग रहते थे। कई गांव ऐसे थे जिनमे एक भी इंसान छोड़ जानवर तक नही थे।
हेमन्त पाण्डेय कहते है सब जगह गाड़ी जाती है वाक्य ने उत्साह थोड़ा कम किया है लेकिन सडकमार्ग से यदि स्थानीय निवासियों को लाभ हुआ है तो मैं बहुत खुश हूं क्योंकि मुझे मेरे निर्देशक ने बताया 1990 में उन गांव में 80/100 रूपए में नमक बिकते देखा है।
आनन्द आयेगा एक ऐसी किताब लिख कर, व्रतचित्र बनाकर जिसमें 34/35 साल पहले का रहन सहन संस्कृति और अब के आधुनिक बदलाव की तुलना का अद्भुत सम्मिश्रण होगा।
वृत्तचित्र "आदि कैलाश 35 साल पहले और अब"
वृत्तचित्र "ॐ पर्वत 35 साल पहले और अब
वृत्तचित्र "मिलम ग्लेशियर 35 साल पहले और अब
मिलम ग्लेशियर, आदि और छोटा कैलास पर डॉक्यूमेंटरी और किताब अगले वर्ष 2025 रिलीज़ करेगे।
उत्तराखण्ड पिथौरागढ़ के चप्पे चप्पे को जानने वाले ललित पंत जी से पिथौरागढ़ में उनके आवास पर विस्तार से बात हुई। मुझे लगता है कोई भी डॉक्युमेंट्री किताब रिसर्च के लिये यदि आपने ललित पंत जी से बात नहीं की तो आप समझ लीजिए आपकी समझ का कोई महत्व ही नही है।
हरीश शर्मा