लद्दाख में 14 दिन
पहला दिन
लद्दाख पहले भी जा चुका हूं पहली बार 2012 में। तब मेरे पत्रकार मित्र नरविजय यादव ने बताया एक बौद्ध भिक्षु है भीखू संघासेना जो लेह में रहकर महाबोधि अंतरराष्ट्रीय ध्यान केंद्र को समर्पित है। मुझे लगा ऐसा तो बहुत से संत कर रहे है तब नरविजय ने बताया ये साधारण नही है।
गुरू जी जैसा होना आसान नही है। फिर बोले यह बौद्ध गुरु चार साल सेना में रहा है । अब मैं चौंका, सेनानी बन गया भिक्षु और भूमिका बन गई एक वृतचित्र बनाने की। प्रश्न था निर्माता कौन किसी भी फिल्म को बनाने का यक्ष प्रश्न, लेकिन दिल से चाह हो तो वाह बन ही जाती है।
अपनी पहली फीचर फिल्म “2 नाईट इन सोल वैली” के निर्माता चंडीगढ़ के नरेन्द्र सिंह दहल से गुज़ारिश की वो तैयार हो गए और मैंने अपने पहले वृतचित्र “A Soldier becomes a Monk” का निर्देशन किया। अब इसकी बात बाद में अभी 12 वर्ष बाद यानि 2024 में नई डॉक्युमेंट्री शूटिंग की बात करते है ।20 अगस्त 2024 को गए थे लेह इंडिगो फ्लाइट से हम चार लोग थे मनिका और मोहित मेरी सिनेमेटोग्राफर जोड़ी और मेरे जोड़ीदार थे राकेश भसीन उर्फ नीनू जिनसे मेरी दिल्ली एयरपोर्ट पर 25 साल बाद मुलाकात हुई। वो मेरे पिथौरागढ़ के संघर्षमय समय के परिचित थे।
मनिका मोहित मेरे 1992 से मित्र रवि सरीन के फिल्म इंस्टीट्यूट के छात्र रहे है मैंने दोनो की प्रतिभा को आर एस एफ आई के कुछ समारोह से जांचा परखा और अपनी इस नई डॉक्यूमेंटरी “सोल्जर मोंक” की शूटिंग करने का मौका दिया। मुझे नए लोगो खासकर महिलाओं को मौका देने में उनको उड़ान भरने देने में खुशी मिलती है।
मनिका प्रतिभाशाली है उन्होने अपने साथी मोहित के साथ बहुत संयम से वृतचित्र की शूटिंग में अपना हुनूर दिखाया।
मेरे इस वृतचित्र के क्या हरेक के निर्माता हमेशा मेरे मददगार ग्राफिसड्स के चेयरमैन मुकेश गुप्ता और एम डी आलोक गुप्ता है। पिछले 25 वर्षों से उनका सहयोग मुझे मिल रहा है ।
लद्दाख जा रहे है बहुत बढ़िया बहुत कुछ है वहां देखने को महसूस करने को । पूरा हिमालय वैसे तो देवभूमि ही है लेकिन लद्दाख देवाचन है पूरे लद्दाख में खासकर लेह में बौद्ध स्वरूप बहुत से बौद्ध भिक्षु मिल जाएंगे। बहुत सी अद्भुत मॉनेस्ट्री है।
घूमने फिरने की बात बाद में पहले बात करते है क्या जरूरी है जाने से पहले बेबी जॉनसन और सरसों का तेल नाक के अन्दर और गले पर लगाने के लिए रख लें। वरना नाक सूख जाएगी गला शुष्क हो जायेगा तो सूखी नाक और मुंह से खून के कण आ सकते है। और वो देख कर आप घबरा सकते है। लेकिन कोई चिन्ता की बात नही है नए पर्यटकों के साथ ऐसा होना आम बात है।
गर्मी में भी एक दो सर्दी वाले कपड़े अवश्य रखे। दिन में गर्मी हो तो भी सुबह शाम रात को कभी भी ठंड हो सकती है।
जब लेह लद्दाख पहुंच जाएं तो पहले दिन कुछ न करे । यह सबसे जरूरी नियम है जैसे ही हमारा प्लेन लेह एयरपोर्ट पहुंचता है किसी न किसी को ऑक्सीजन की कमी महसूस होने लगती है ।मुझे याद है जब हम 12 साल पहले लेह शूटिंग के लिए पहुंचे थे तब हमारी एक एडिटर को ऑक्सीजन की कमी पूरी करने के लिए सिलेंडर लगाया गया था तब भी उनकी तबीयत में सुधार नही हुआ और सुबह पहली फ्लाइट से उन्हे मुंबई भेजना पड़ा।
इस बार हम पहुंचे तो एयरपोर्ट से बाहर आने तक सब सही था बाहर आने के बाद मुझे और नीनू यानि राकेश को बीच बीच में सांस लेने में दिक्कत हो रही थी। मनिका को खांसी आ रही थी गला सूख रहा था। मोहित ठीक था ।
मेरा विचार पर्यटकों को डराना नही है बल्कि आगाह करना है । यदि आप वॉक करते है दौड़ते है प्राणायाम करते है व्यायाम करते है नियमता तो आपको दिक्कतें कम आएंगी। लेकिन कुछ न कुछ तो आएंगी ही।
महाबोधि से यानि गुरु जी ने पदमा को हमे लेने को भेजा था। हम करीब आधे घंटे में महाबोधि ध्यान केन्द्र पहुंच गए। रास्ते में एक नव निर्मित हो रहे भवन को दिखाकर पदमा ने बताया ये लेह का पहला पीवीआर सिनेमा हॉल बन रहा है। हमने एक बात पर संज्ञान लिया सड़क पर सौर ऊर्जा की बहुत सी स्ट्रीट लाइट लगी थी। देखकर अच्छा लगा।
हमें आगाह किया गया आज सिर्फ खाएं पिएं आराम करे कोई काम नही करना।
मुझे बतौर डायरेक्टर रहने को विशेष कमरा दिया गया और तीनों के कमरों में भी कोई कमी नही थी । पिछले बार की तुलना में इस बार कमरे आधुनिक और सुविधाजनक हो गए है।
पदमा गुरुजी भीखू संघसेना की नई सचिव है। मिलनसार आधुनिक उन्होने हमें कहा अभी आप लोग लंच कीजिए आराम कीजिए । गुरुजी शाम को मिलेंगे।लंच के लिए बड़ा सा हॉल है बाहर भी बैठने की खूब जगह है एक बार में करीब 50/75 लोग एक साथ बैठकर खाना खा सकते है। 12 वर्ष पहले की तुलना में भोजन वाली जगह में विशेष बदलाव यहीं है कि साज सजावट बेहतर हुई है। किसी तरह का कोई प्रदूषण नहीं है। पहले मेहमानों को स्वयं अपने झूठे बर्तन धोने पड़ते थे। अब उस सुविधा से वंचित किया गया है।
नए स्वागत कक्ष का निर्माण किया गया है जो बहुत सुन्दर है। भोजन और रहन सहन की देखरेख की जिम्मेदारी अनुभवी और देश विदेश में हॉस्पिटल्टी इंडस्ट्री में रह चूके उदय वर्मा के पास है किचन के पांचों करिंदे शेफ भुवन सहित मोहन, आनन्द, अजय और महिपाल सभी उत्तराखण्ड के है।
दोपहर भोजन के बाद सबने आराम किया जो सबसे जरुरी था इससे आपका शरीर लद्दाख की आबोहवा में खुद को ढालता है।
शाम को 6 बजे गुरुजी मिलेंगे ऐसा msg पदमा ने हमें दिया।
हम तैयार थे। समयानुसार हम 6 बजे गुरू जी के आश्रय में थे। वहां हमने पहली बार बहुत मीठी खुमानी खाई। गुरू जी की बैठक भी नई बनी है, बैठक में करीब 50 से अधिक छोटी बड़ी महात्मा बौद्ध की खुबसूरत प्रतिमाएं थी। महाबोधि में जो नामचीन अतिथि आए थे उनके साथ गुरुजी के कुछ फोटो थे।गुरुजी हमेशा की तरह बहुत प्रेम और सरलता से मिले। मेरी टीम से परिचय हुआ। शूटिंग की रूपरेखा पर हमारी विस्तृत चर्चा हुई । दो दिन बाद सिंगापुर से 40 सदस्यीय ग्रुप आना था उसकी भी गहमा गहमी थी।
भिक्षु जॉय 12 साल पहले,
गुरुजी के यहां एक युवा साथी को देख मैं चौंका क्योंकि उसे देख मुझे याद आया कि 12 साल पहले मैंने दो बच्चो बौद्ध भिक्षु जिनकी उम्र 8/10 वर्ष रही होगी के साथ शूटिंग की थी और उनमें से एक बच्चा वहीं युवा था जो अब बौद्ध भिक्षु नही है मैंने उसे याद दिलाया तो उसने अपना नाम बताया जिसे याद रखना मेरे लिए आसान नही था तो उसने कहा आप मुझे जॉय बुलाइए।
बाएं जॉय 12 साल बाद 2024 में,जॉय ने बताया युवा होने पर बौद्ध भिक्षु या बौद्ध नन को अपने निर्णय पर पुना विचार करने का मौक़ा मिलता है कि हमें भविष्य में बौद्ध भिक्षु या नन बने रहना है या सांसारिक इन्सान बनना है और मैंने दूसरा रास्ता चुना। बौद्ध भिक्षु न रहकर भी मनोस्थिति और क्रियाकलाप वैसे ही होते है। संस्कार तो बचपन से पड़ ही जाते है।
गुरू जी को मैंने कहा इस बार डॉक्युमेंट्री का शीर्षक “सोल्जर मोंक “ रखा है कवर के लिए मुझे आपके भगवा वस्त्रों पर सेना की cap पहनानी है। गुरू जी ने कहा अब मैं बौद्ध भिक्षु हूं सेना की cap का विचार सही रहेगा। मेरे कहने पर गुरुजी ने हामी भरी बोले जैसा आपको सही लगे।
रात्रि भोज के समय हम केंटीन में पहुंचे। भोजन कर जल्दी ही शुभरात्रि का आगाज हो गया। ठंड हो गई थी लेह लद्दाख में कमरों में पंखे नही होते। और सभी वाहन टैक्सी एसी का इस्तेमाल नहीं करते क्योंकि पूरा क्षेत्र प्रदूषण रहित है।
जब हम खाना खाकर कमरों में जा रहे थे तब हमें बेहद खुबसूरत चांद देखने को मिला। कहते है लद्दाख में ऐसा चांद कम ही देखने को मिलता है।
शेष अगले दिन।
हरीश शर्मा