Thursday, September 12, 2024

लद्दाख में 14 दिन बातें पहले दिन की

लद्दाख में 14 दिन 

पहला दिन 

लद्दाख पहले भी जा चुका हूं पहली बार 2012 में। तब मेरे पत्रकार मित्र नरविजय यादव ने बताया एक बौद्ध भिक्षु है भीखू संघासेना जो लेह में रहकर महाबोधि अंतरराष्ट्रीय ध्यान केंद्र को समर्पित है। मुझे लगा ऐसा तो बहुत से संत कर रहे है तब नरविजय ने बताया ये साधारण नही है। 

गुरू जी जैसा होना आसान नही है। फिर बोले यह बौद्ध गुरु चार साल सेना में रहा है । अब मैं चौंका, सेनानी बन गया भिक्षु और भूमिका बन गई एक वृतचित्र बनाने की। प्रश्न था निर्माता कौन किसी भी फिल्म को बनाने का यक्ष प्रश्न, लेकिन दिल से चाह हो तो वाह बन ही जाती है। 

अपनी पहली फीचर फिल्म “2 नाईट इन सोल वैली” के निर्माता चंडीगढ़ के नरेन्द्र सिंह दहल से गुज़ारिश की वो तैयार हो गए और मैंने अपने पहले वृतचित्र “A Soldier becomes a Monk” का निर्देशन किया। अब इसकी बात बाद में अभी 12 वर्ष बाद यानि 2024 में नई डॉक्युमेंट्री शूटिंग की बात करते है । 

20 अगस्त 2024 को गए थे लेह इंडिगो फ्लाइट से हम चार लोग थे मनिका और मोहित मेरी सिनेमेटोग्राफर जोड़ी और मेरे जोड़ीदार थे राकेश भसीन उर्फ नीनू जिनसे मेरी दिल्ली एयरपोर्ट पर 25 साल बाद मुलाकात हुई। वो मेरे पिथौरागढ़ के संघर्षमय समय के परिचित थे। 

मनिका मोहित मेरे 1992 से मित्र रवि सरीन के फिल्म इंस्टीट्यूट के छात्र रहे है मैंने दोनो की प्रतिभा को आर एस एफ आई के कुछ समारोह से जांचा परखा और अपनी इस नई डॉक्यूमेंटरी “सोल्जर मोंक” की शूटिंग करने का मौका दिया। मुझे नए लोगो खासकर महिलाओं को मौका देने में उनको उड़ान भरने देने में खुशी मिलती है। 

मनिका प्रतिभाशाली है उन्होने अपने साथी मोहित के साथ बहुत संयम से वृतचित्र की शूटिंग में अपना हुनूर दिखाया।

मेरे इस वृतचित्र के क्या हरेक के निर्माता हमेशा मेरे मददगार ग्राफिसड्स के चेयरमैन मुकेश गुप्ता और एम डी आलोक गुप्ता  है। पिछले 25 वर्षों से उनका सहयोग मुझे मिल रहा है ।

लद्दाख जा रहे है बहुत बढ़िया बहुत कुछ है वहां देखने को महसूस करने को । पूरा हिमालय वैसे तो देवभूमि ही है लेकिन लद्दाख देवाचन है पूरे लद्दाख में खासकर लेह में बौद्ध स्वरूप बहुत से बौद्ध भिक्षु मिल जाएंगे। बहुत सी अद्भुत मॉनेस्ट्री है।

घूमने फिरने की बात बाद में पहले बात करते है क्या जरूरी है जाने से पहले बेबी जॉनसन और सरसों का तेल नाक के अन्दर और गले पर लगाने के लिए रख लें। वरना नाक सूख जाएगी गला शुष्क हो जायेगा तो सूखी नाक और मुंह से खून के कण आ सकते है। और वो देख कर आप घबरा सकते है। लेकिन कोई चिन्ता की बात नही है नए पर्यटकों के साथ ऐसा होना आम बात है।

गर्मी में भी एक दो सर्दी वाले कपड़े अवश्य रखे। दिन में गर्मी हो तो भी सुबह शाम रात को कभी भी ठंड हो सकती है।

जब लेह लद्दाख पहुंच जाएं तो पहले दिन कुछ न करे । यह सबसे जरूरी नियम है जैसे ही हमारा प्लेन लेह एयरपोर्ट पहुंचता है किसी न किसी को ऑक्सीजन की कमी महसूस होने लगती है । 

मुझे याद है जब हम 12 साल पहले लेह शूटिंग के लिए पहुंचे थे तब हमारी एक एडिटर को ऑक्सीजन की कमी पूरी करने के लिए सिलेंडर लगाया गया था तब भी उनकी तबीयत में सुधार नही हुआ और सुबह पहली फ्लाइट से उन्हे मुंबई भेजना पड़ा।

इस बार हम पहुंचे तो एयरपोर्ट से बाहर आने तक सब सही था बाहर आने के बाद मुझे और नीनू यानि राकेश को बीच बीच में सांस लेने में दिक्कत हो रही थी। मनिका को खांसी आ रही थी गला सूख रहा था। मोहित ठीक था । 

मेरा विचार पर्यटकों को डराना नही है बल्कि आगाह करना है । यदि आप वॉक करते है दौड़ते है प्राणायाम करते है व्यायाम करते है नियमता तो आपको दिक्कतें कम आएंगी। लेकिन कुछ न कुछ तो आएंगी ही। 

महाबोधि से यानि गुरु जी ने पदमा को हमे लेने को भेजा था। हम करीब आधे घंटे में महाबोधि ध्यान केन्द्र पहुंच गए। रास्ते में एक नव निर्मित हो रहे भवन को दिखाकर पदमा ने बताया ये लेह का पहला पीवीआर सिनेमा हॉल बन रहा है। हमने एक बात पर संज्ञान लिया सड़क पर सौर ऊर्जा की बहुत सी स्ट्रीट लाइट लगी थी। देखकर अच्छा लगा।

हमें आगाह किया गया आज सिर्फ खाएं पिएं आराम करे कोई काम नही करना। 

मुझे बतौर डायरेक्टर रहने को विशेष कमरा दिया गया और तीनों के कमरों में भी कोई कमी नही थी । पिछले बार की तुलना में इस बार कमरे आधुनिक और सुविधाजनक हो गए है। 

पदमा गुरुजी भीखू संघसेना की नई सचिव है। मिलनसार आधुनिक उन्होने हमें कहा अभी आप लोग लंच कीजिए आराम कीजिए । गुरुजी शाम को मिलेंगे। 

लंच के लिए बड़ा सा हॉल है बाहर भी बैठने की खूब जगह है एक बार में करीब 50/75 लोग एक साथ बैठकर खाना खा सकते है। 12 वर्ष पहले की तुलना में भोजन वाली जगह में विशेष बदलाव यहीं है कि साज सजावट बेहतर हुई है। किसी तरह का कोई प्रदूषण नहीं है। पहले मेहमानों को स्वयं अपने झूठे बर्तन धोने पड़ते थे। अब उस सुविधा से वंचित किया गया है। 

नए स्वागत कक्ष का निर्माण किया गया है जो बहुत सुन्दर है। भोजन और रहन सहन की देखरेख की जिम्मेदारी अनुभवी और देश विदेश में हॉस्पिटल्टी इंडस्ट्री में रह चूके उदय वर्मा के पास है  किचन के पांचों करिंदे शेफ भुवन सहित मोहन, आनन्द, अजय और महिपाल सभी उत्तराखण्ड के है। 

दोपहर भोजन के बाद सबने आराम किया जो सबसे जरुरी था इससे आपका शरीर लद्दाख की आबोहवा में खुद को ढालता है।

शाम को 6 बजे गुरुजी मिलेंगे ऐसा msg पदमा ने हमें दिया।

हम तैयार थे। समयानुसार हम 6 बजे गुरू जी के आश्रय में थे। वहां हमने पहली बार बहुत मीठी खुमानी खाई। गुरू जी की बैठक भी नई बनी है, बैठक में करीब 50 से अधिक छोटी बड़ी महात्मा बौद्ध की खुबसूरत प्रतिमाएं थी। महाबोधि में जो नामचीन अतिथि आए थे उनके साथ गुरुजी के कुछ फोटो थे।

गुरुजी हमेशा की तरह बहुत प्रेम और सरलता से मिले। मेरी टीम से परिचय हुआ। शूटिंग की रूपरेखा पर हमारी विस्तृत चर्चा हुई । दो दिन बाद सिंगापुर से 40 सदस्यीय ग्रुप आना था उसकी भी गहमा गहमी थी। 

             भिक्षु जॉय 12 साल पहले,

गुरुजी के यहां एक युवा साथी को देख मैं चौंका क्योंकि उसे देख मुझे याद आया कि 12 साल पहले मैंने दो बच्चो बौद्ध भिक्षु जिनकी उम्र 8/10 वर्ष रही होगी के साथ शूटिंग की थी और उनमें से एक बच्चा वहीं युवा था जो अब बौद्ध भिक्षु नही है मैंने उसे याद दिलाया तो उसने अपना नाम बताया जिसे याद रखना मेरे लिए आसान नही था तो उसने कहा आप मुझे जॉय बुलाइए।

    बाएं जॉय 12 साल बाद 2024 में,

जॉय ने बताया युवा होने पर बौद्ध भिक्षु या बौद्ध नन को अपने निर्णय पर पुना विचार करने का मौक़ा मिलता है कि हमें भविष्य में बौद्ध भिक्षु या नन बने रहना है या सांसारिक इन्सान बनना है और मैंने दूसरा रास्ता चुना। बौद्ध भिक्षु न रहकर भी मनोस्थिति और क्रियाकलाप वैसे ही होते है। संस्कार तो बचपन से पड़ ही जाते है। 

गुरू जी को मैंने कहा इस बार डॉक्युमेंट्री का शीर्षक “सोल्जर मोंक “ रखा है कवर के लिए मुझे आपके भगवा वस्त्रों पर सेना की cap पहनानी है। गुरू जी ने कहा अब मैं बौद्ध भिक्षु हूं सेना की cap का विचार सही रहेगा। मेरे कहने पर गुरुजी ने हामी भरी बोले जैसा आपको सही लगे।

रात्रि भोज के समय हम केंटीन में पहुंचे। भोजन कर जल्दी ही शुभरात्रि का आगाज हो गया। ठंड हो गई थी लेह लद्दाख में कमरों में पंखे नही होते। और सभी वाहन टैक्सी एसी का इस्तेमाल नहीं करते क्योंकि पूरा क्षेत्र प्रदूषण रहित है। 

जब हम खाना खाकर कमरों में जा रहे थे तब हमें बेहद खुबसूरत चांद देखने को मिला। कहते है लद्दाख में ऐसा चांद कम ही देखने को मिलता है।

शेष अगले दिन।

हरीश शर्मा 



Thursday, September 5, 2024

पिथौरागढ़ का मेरा साधु मित्र

पिथौरागढ़ लक्ष्मण मेरा साधु मित्र 
लक्ष्मण गिरि नाम था इस बालक साधु का । पिथौरागढ़ में 1990 में मुलाकत हुई थी अचानक कहीं। मुझे उसकी बातचीत उसका पहनावा उसकी भविष्यवाणी सभी बहुत पसंद आई। मेरे साथ साथ लक्ष्मण मेरे पिथौरागढ़ के खास सखा Chunna Khattri aka Rajiv khattri का भी मित्र बन गया। Meghna Pithoragarh में अक्सर लक्ष्मण आता हम गपशप करते। वो दक्षिण भारत का कहीं का था।
उसने मेरे लिए 1990 में उस समय भविष्यवाणी की थी हरीश तू जल्दी ही पिथौरागढ़ से दूर बहुत दूर दिल्ली जाकर बसोगा और तू इतना नाम कमाएगा जो तूने सपने में भी नही सोचा होगा।

मैं उसकी भविष्यवाणी पर सिर्फ मुस्करा कर रह गया क्योंकि उस समय मैं पिथौरागढ़ में बतौर पत्रकार बहुत चर्चित था मेरी पहचान शहर के हर नामिगीरामी व्यक्ति से थी शासन प्रशासन नेता राजनेता सभी मुझे चाहते थे। मेरा इरादा वही स्थाई रूप से बसने का था । 

मुझे लक्ष्मण की उम्र के साथ उसकी भविष्यवाणी बहुत बचकानी लगी थी। लेकिन हम अच्छे मित्र बन गए। 1.6 वर्ष बाद ही परिस्थितियां ऐसी बनी कि मुझे पिथौरागढ़ छोड़कर दिल्ली जाना पड़ा। जाने से पहले लक्ष्मण फिर मिला बोला जा रहे हो छोड़कर । लेकिन हम फिर मिलेंगे।

 वो पिथौरागढ़ रहता नही था आता था साल में दो तीन बार बोलता था हम तो फक्कड़ है घूमते रहते है जब तुमसे मिलने का मन करता है आ जाते है। 

दिल्ली आकर व्यस्त होता चला गया । यदा कदा चुन्ना से लक्ष्मण के विषय में पता चलता रहता था । एक दो बार लक्ष्मण का फोन आया हाल चाल की बात होती मिलना नही हुआ।

बाद में फोन आया हो तो अनजान नम्बर देखकर उसके call को न उठाया हो ऐसा सम्भव है। 

कुछ सालो बाद मैं मीनाक्षी और बेटी के साथ पहली बार पिथौरागढ़ गया तो इत्तेफाक देखिए चुन्ना ने बताया लक्ष्मण भी आया हुआ है । और थोड़ी देर बाद अपने आप ही आ गया मिला बहुत जोश और प्यार से, पता नही क्या रिश्ता था उसका और मेरा। उसने शिकायत की दिल्ली आया था तुमने फोन ही नही लिया कई बार किया तुमसे ही मिलने आया था । 

मुझे बहुत ग्लानि हुई मेरा चेहरा देखकर वो समझ गया बोला अरे मज़ाक कर रहा हूं कैसे आता दिल्ली। पता चलता रहता था तुम बहुत बड़े हो गए हो बड़े होते है तो व्यस्तता बड़ ही जाती है । 

मुझे तो 90 में ही पता था तू बना ही बड़ा होने के लिए है । अभी एक झटका लगेगा बहुत बड़ा तुझे, लेकिन मुझे पता है चिन्ता नही करता अब तू, तेरा समय फिर आयेगा 2026 से, पहले से भी ऊंचा जायेगा।

मुझे पता चल गया था वो दिल्ली आया था लेकिन मुझे अब बुरा न लगे इसलिए बात को घुमा रहा है । बोला मैं तेरे को मिलने मुम्बई आयेगा फोन उठा लेना मुंबई बहुत दूर है भाई।

जब वो भविष्यवाणी करता उसकी भावभंगिमा ही बदल जाती थी तुम से तू तेरे और हरीश जी से हरीश पर आ जाता था । उसने बेटी को देखा बोला बात करते है पर यह तेरे से भी बहुत बड़ी होगी तुझे इस पर नाज़ होगा वो हाथ जन्मपत्री कुछ नही देखता था। 

बेटी के लिए उसने एक गोमेद दिया बोला तेरी स्थिति अभी नही है लेकिन जब तेरा समय आयेगा सोने की अंगूठी में पहना देना। तुझे याद नही रहेगा लेकिन पहनाना जरूरी है । फिर बोला चल बाहर आराम से बात करते है । बाहर आकर अकेले में बोला मारक योग है लेकिन तू और मैं बचा लेगा चिंता मत करना मैं है न तेरा भाई। 

उसके बाद जैसे वो होश में आया बोला मुझे लग रहा है आज अधिक बोल गया। फिर बोला हम मिलेंगे लेकिन कब किस रूप में नही कह सकता हमारा साथ हमेशा का साथ है तुम कहीं रहो मैं कहीं रहूं तुम्हारे पास ही हूं। अब मैं चलता हूं ख्याल रखिए। और बिना कुछ लिए मुस्करा कर बेटी पत्नी को आशीर्वाद देकर चला गया।

मैं भूल ही गया ईहा को अंगूठी पहनाना और उसका खामियाजा हमें भुगतना पड़ा था। जबकि बाद में मुंबई के एक ज्योतिष के कहने के बाद गोमेद का लॉकेट कुछ समय के लिए पहनाया था। मुझे उस समय भी याद नही आया लक्ष्मण मुझे गोमेद दे गया था।

लक्ष्मण मुझसे चार पांच छोटा ही था । मुझे साधु संयासियों आदि में हमेशा रुचि रही है बहुत साधुओं से मिलता रहा हूं करीब सभी साधु संतो से स्नेह आशीर्वाद मिलता रहा है । लेकिन लक्ष्मण अलग ही था अपना सा जब भी मिलता बहुत प्यार से मिलता पिछले जन्मों का कोई सम्बन्ध रहा हो संभवतया।

पिथौरागढ़ से आए कुछ माह ही बीते होंगे। एक दिन चुन्ना का फोन आया बोला हरीश एक बुरी ख़बर है मुझे लगा घर में कुछ हो गया है वो बोला तेरा यार लक्ष्मण दुनियां छोड़ गया एक दुर्घटना मे उसकी मृत्यु हो गई। 

मैं कुछ बोल ही नहीं पाया । चुन्ना समझ गया बोला मैं बाद में बात करता हूं। मेरी आंखें नम थी । अब मुझे समझ आ रहा था पिथौरागढ़ की यात्रा बनी ही इसलिए थी कि उससे अन्तिम बार मिलना था। मुझे रह रहकर उससे पिथौरागढ़ की मुलाकात याद आ रही थी। मृत्यु हमेशा निष्ठुर ही होती है । 

मुझे हमेशा लगता है वो मुझे मिलेगा जरूर किस रूप में मुझे नही पता लेकिन मुझे मिलेगा मेरे कान में कहेगा हरीश जी पहचाना नही मै तेरा लक्ष्मण।। जब भी ये तस्वीर देखता हूं लगता है अभी बोल पड़ेगा। लक्ष्मण की याद में उसके जाने के कई साल बाद ये मेरी श्रद्धान्जाली है । क्यों लिखा ये सब इतने समय बाद नही पता ।

पर मुझे लगता है वो मुझे मिलेगा जरूर। इति 

हरीश शर्मा 








My Sadhu friend Laxman Giri gone far away

My Sadhu friend Laxman in  Pithoragarh 


The name of that 20/21 year sadhu was Laxman Giri. I stumbled upon him in Pithoragarh in 1990, a chance encounter that would forever change my life. His words, his attire, his aura – everything about him captivated me. We formed an unlikely bond, and he became a dear friend to both me and my close companion, Chunna Khattri.

Laxman, hailing from somewhere in South India, would often visit Meghna Pithoragarh, and our conversations were filled with laughter, wisdom, and a touch of the mystical.

 In 1990, he made a prediction that seemed almost prophetic: "Harish," he said, "you will soon leave Pithoragarh for Delhi, and your fame will soar to heights unimaginable." I smiled at his words, dismissing them as the musings of a young soul. 

After all, I was already a well-known journalist in Pithoragarh, respected by everyone from the local administration to the political elite. My roots were firmly planted there.

But fate had other plans. 

Eighteen months later, circumstances forced me to leave Pithoragarh and head to Delhi. As I prepared to depart, I met with Laxman one last time. His eyes held a knowing sadness as he said, "You're leaving me, but we will meet again."

Those words echoed in my mind as I embarked on a new chapter, little realising how prophetic they would prove to be.

Laxman wasn't a permanent resident of Pithoragarh. He would visit two or three times a year, a nomadic soul who followed his own rhythm. He often joked that I was a vagabond too, always on the move, and whenever he felt the pull, he'd come to see me.

After moving to Delhi, my life became a whirlwind of activity. I'd occasionally hear about Laxman from Chunna, and he'd call me a few times to check in. But our lives had diverged, and we didn't manage to meet.

Perhaps I’d missed his calls, mistaking his number for an unknown caller. Years later, when Meenakshi, Iha and I returned to Pithoragarh, Chunna informed me that Laxman was also there. To my delight, he visited me unexpectedly.

Our reunion was filled with warmth and affection, He told me about not picking up his calls in Delhi, when he was specially coming to meet me, I tried your number many times but no response from you. 

I feel guilty seeing my face. He said, "Just joking, I know he is just trying to balance the truth so I should not be ashamed. 

He understood the demands of my new life, saying, "I knew back in 1990 that you were destined for greatness. You've grown bigger, and responsibilities have increased."

He then dropped a bombshell: "You'll face a significant challenge soon, but don't worry. Your fortunes will rise again, starting in 2026, even higher than before."

I learned that Laxman had visited Delhi but had avoided mentioning it to spare my feelings. He'd joked about coming to Mumbai instead, playfully teasing me about the distance.

His predictions were always accompanied by a change in demeanour, his voice shifting between familiarity and respect. When he looked at my daughter, he said, "We'll talk, but she'll be much bigger than you. You'll be proud of her." He didn't rely on palm reading or astrology.

For my daughter, he gave a gomedh, a protective stone. "You can't afford it now, but when your time comes, set it in a gold ring. You might not remember, but it's important to wear it."

Stepping outside, he confided, "A dangerous planetary alignment is affecting you, but yourself and I will protect you. Don't worry, I'm your brother."

As if realising he'd spoken too much, he added, "I feel like I've said too much today. We'll meet again, but I can't say when or how. We're always connected, even though we're physically apart. I'm with you. Now, I must go. Take care." Giving blessing to my daughter and wife, he departed, leaving a lasting impression on our hearts.

Unfortunately, I forgot to have Iha wear the gomedh ring, and we faced the consequences. Following the advice of a Mumbai astrologer, I had her wear an onyx locket for a time. Even then did not I recall Laxman's gift.

Laxman was only a few years younger than me. I've always been drawn to saints and hermits, seeking their wisdom and blessings. While I've met many holy men, Laxman was unique, feeling more like a friend than a spiritual figure. Our connection seemed almost predestined.

Just a few months after returning from Pithoragarh, I received a devastating call from Chunna. Laxman had passed away in an accident. I was stunned, unable to speak. 

Chunna understood and let me process the news. Tears welled up in my eyes, and I realized that our trip to Pithoragarh had been a final farewell.

Death is always cruel, but I believe I'll see Laxman again, though in what form I cannot say. I imagine him whispering in my ear, "Harish ji, didn't you recognize me? I'm your Lakshman." Every time I look at this picture, I feel his presence.

This tribute, written years after his passing, is a testament to the enduring bond we shared. Though time has passed, I know that our paths will cross again.

-Harish Sharma