Thursday, September 5, 2024

पिथौरागढ़ का मेरा साधु मित्र

पिथौरागढ़ लक्ष्मण मेरा साधु मित्र 
लक्ष्मण गिरि नाम था इस बालक साधु का । पिथौरागढ़ में 1990 में मुलाकत हुई थी अचानक कहीं। मुझे उसकी बातचीत उसका पहनावा उसकी भविष्यवाणी सभी बहुत पसंद आई। मेरे साथ साथ लक्ष्मण मेरे पिथौरागढ़ के खास सखा Chunna Khattri aka Rajiv khattri का भी मित्र बन गया। Meghna Pithoragarh में अक्सर लक्ष्मण आता हम गपशप करते। वो दक्षिण भारत का कहीं का था।
उसने मेरे लिए 1990 में उस समय भविष्यवाणी की थी हरीश तू जल्दी ही पिथौरागढ़ से दूर बहुत दूर दिल्ली जाकर बसोगा और तू इतना नाम कमाएगा जो तूने सपने में भी नही सोचा होगा।

मैं उसकी भविष्यवाणी पर सिर्फ मुस्करा कर रह गया क्योंकि उस समय मैं पिथौरागढ़ में बतौर पत्रकार बहुत चर्चित था मेरी पहचान शहर के हर नामिगीरामी व्यक्ति से थी शासन प्रशासन नेता राजनेता सभी मुझे चाहते थे। मेरा इरादा वही स्थाई रूप से बसने का था । 

मुझे लक्ष्मण की उम्र के साथ उसकी भविष्यवाणी बहुत बचकानी लगी थी। लेकिन हम अच्छे मित्र बन गए। 1.6 वर्ष बाद ही परिस्थितियां ऐसी बनी कि मुझे पिथौरागढ़ छोड़कर दिल्ली जाना पड़ा। जाने से पहले लक्ष्मण फिर मिला बोला जा रहे हो छोड़कर । लेकिन हम फिर मिलेंगे।

 वो पिथौरागढ़ रहता नही था आता था साल में दो तीन बार बोलता था हम तो फक्कड़ है घूमते रहते है जब तुमसे मिलने का मन करता है आ जाते है। 

दिल्ली आकर व्यस्त होता चला गया । यदा कदा चुन्ना से लक्ष्मण के विषय में पता चलता रहता था । एक दो बार लक्ष्मण का फोन आया हाल चाल की बात होती मिलना नही हुआ।

बाद में फोन आया हो तो अनजान नम्बर देखकर उसके call को न उठाया हो ऐसा सम्भव है। 

कुछ सालो बाद मैं मीनाक्षी और बेटी के साथ पहली बार पिथौरागढ़ गया तो इत्तेफाक देखिए चुन्ना ने बताया लक्ष्मण भी आया हुआ है । और थोड़ी देर बाद अपने आप ही आ गया मिला बहुत जोश और प्यार से, पता नही क्या रिश्ता था उसका और मेरा। उसने शिकायत की दिल्ली आया था तुमने फोन ही नही लिया कई बार किया तुमसे ही मिलने आया था । 

मुझे बहुत ग्लानि हुई मेरा चेहरा देखकर वो समझ गया बोला अरे मज़ाक कर रहा हूं कैसे आता दिल्ली। पता चलता रहता था तुम बहुत बड़े हो गए हो बड़े होते है तो व्यस्तता बड़ ही जाती है । 

मुझे तो 90 में ही पता था तू बना ही बड़ा होने के लिए है । अभी एक झटका लगेगा बहुत बड़ा तुझे, लेकिन मुझे पता है चिन्ता नही करता अब तू, तेरा समय फिर आयेगा 2026 से, पहले से भी ऊंचा जायेगा।

मुझे पता चल गया था वो दिल्ली आया था लेकिन मुझे अब बुरा न लगे इसलिए बात को घुमा रहा है । बोला मैं तेरे को मिलने मुम्बई आयेगा फोन उठा लेना मुंबई बहुत दूर है भाई।

जब वो भविष्यवाणी करता उसकी भावभंगिमा ही बदल जाती थी तुम से तू तेरे और हरीश जी से हरीश पर आ जाता था । उसने बेटी को देखा बोला बात करते है पर यह तेरे से भी बहुत बड़ी होगी तुझे इस पर नाज़ होगा वो हाथ जन्मपत्री कुछ नही देखता था। 

बेटी के लिए उसने एक गोमेद दिया बोला तेरी स्थिति अभी नही है लेकिन जब तेरा समय आयेगा सोने की अंगूठी में पहना देना। तुझे याद नही रहेगा लेकिन पहनाना जरूरी है । फिर बोला चल बाहर आराम से बात करते है । बाहर आकर अकेले में बोला मारक योग है लेकिन तू और मैं बचा लेगा चिंता मत करना मैं है न तेरा भाई। 

उसके बाद जैसे वो होश में आया बोला मुझे लग रहा है आज अधिक बोल गया। फिर बोला हम मिलेंगे लेकिन कब किस रूप में नही कह सकता हमारा साथ हमेशा का साथ है तुम कहीं रहो मैं कहीं रहूं तुम्हारे पास ही हूं। अब मैं चलता हूं ख्याल रखिए। और बिना कुछ लिए मुस्करा कर बेटी पत्नी को आशीर्वाद देकर चला गया।

मैं भूल ही गया ईहा को अंगूठी पहनाना और उसका खामियाजा हमें भुगतना पड़ा था। जबकि बाद में मुंबई के एक ज्योतिष के कहने के बाद गोमेद का लॉकेट कुछ समय के लिए पहनाया था। मुझे उस समय भी याद नही आया लक्ष्मण मुझे गोमेद दे गया था।

लक्ष्मण मुझसे चार पांच छोटा ही था । मुझे साधु संयासियों आदि में हमेशा रुचि रही है बहुत साधुओं से मिलता रहा हूं करीब सभी साधु संतो से स्नेह आशीर्वाद मिलता रहा है । लेकिन लक्ष्मण अलग ही था अपना सा जब भी मिलता बहुत प्यार से मिलता पिछले जन्मों का कोई सम्बन्ध रहा हो संभवतया।

पिथौरागढ़ से आए कुछ माह ही बीते होंगे। एक दिन चुन्ना का फोन आया बोला हरीश एक बुरी ख़बर है मुझे लगा घर में कुछ हो गया है वो बोला तेरा यार लक्ष्मण दुनियां छोड़ गया एक दुर्घटना मे उसकी मृत्यु हो गई। 

मैं कुछ बोल ही नहीं पाया । चुन्ना समझ गया बोला मैं बाद में बात करता हूं। मेरी आंखें नम थी । अब मुझे समझ आ रहा था पिथौरागढ़ की यात्रा बनी ही इसलिए थी कि उससे अन्तिम बार मिलना था। मुझे रह रहकर उससे पिथौरागढ़ की मुलाकात याद आ रही थी। मृत्यु हमेशा निष्ठुर ही होती है । 

मुझे हमेशा लगता है वो मुझे मिलेगा जरूर किस रूप में मुझे नही पता लेकिन मुझे मिलेगा मेरे कान में कहेगा हरीश जी पहचाना नही मै तेरा लक्ष्मण।। जब भी ये तस्वीर देखता हूं लगता है अभी बोल पड़ेगा। लक्ष्मण की याद में उसके जाने के कई साल बाद ये मेरी श्रद्धान्जाली है । क्यों लिखा ये सब इतने समय बाद नही पता ।

पर मुझे लगता है वो मुझे मिलेगा जरूर। इति 

हरीश शर्मा 








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