सुशांत सिंह राजपूत और फ़िल्म नगरी
सुशांत सिंह राजपूत मेरी आने वाली किताब का हिस्सा नही थे क्योंकि मेरा उनसे कभी वास्ता नही पड़ा। लेकिन फ़िल्म उद्योग की कार्यशैली पर मुझे विस्तार से लिखना ही था। अब वही कार्यशैली सुशांत के माध्यम से आप लोगो के समक्ष है।
सुशांत सिंह राजपूत को पता होता कि उनके जाने के बाद देश में माफ कीजिये सोशल मीडिया पर इतना बवाल होगा और देश मे उनके इतने चाहने वाले है तो अपनी जान कतई नही लेते।
वैसे मेरा रिश्ता फ़िल्म उद्योग से जिसे आसान भाषा में सब बॉलीवुड कहते है पिछले 25 साल से है। 20 साल सक्रिय और 5 साल बतौर दर्शक।
सुशांत सिंह के जाने के बाद उनके इतने हितैषी मिलेंगे मुझे उम्मीद नही थी, जनता जनार्दन का तो समझ आता है । एक युवा आकर्षक सफल अभिनेता के अचानक चले जाने का वास्तव में आघात लगा था। मुझे भी लगा। कभी उनके साथ काम नही किया था हाँ उनकी फिल्में देखी थी प्रतिभाशाली थे लगा था चलो नई पौध में एक सितारा यह भी होगा।
लेकिन मैं विचलित हुआ जब फ़िल्म नगरी के कुंठित हताश निराश लोगो ने सुशांत के अशरीरी कंधे पर बंदूक रखकर चलाना शुरू किया। मैं फिर भी देखता रहा पढ़ता रहा समझने की कोशिश करता रहा इस सफल लड़के ने खुदकुशी क्यों की होगी ।
जितना पढ़ा देखा, लोगो का ज्ञान समझने की कोशिश की, नही समझ आया दिमाग का दही हो गया। किताबें लिखने के कारण गोआ रहता हूँ तो मुम्बई मीडिया की खबरें नही मिल पाती है। ओल्ड स्कूल होने के कारण अभी भी कागज वाला अख़बार ही पढ़ने की आदत है डिजिटल के माध्यम से खबरों की खुशुबू नही आती।
लेकिन मुम्बई मिडडे को डिजिटल मीडिया पर खोल ही लिया और मुझे बहुत हद तक सुशांत की हताशा समझ आ गई। हालांकि वो इतनी गहरी नही है कि कोई खुदकुशी कर ले लेकिन अपने पैरों पर कुल्हाड़ी मारने की समझ तो हो ही जाती है। सुशांत ने जिन फ़िल्मों में काम करने का सपना देखा था वो तो बननी ही नही थी। लेकिन यह समझ भी आया यह लड़का अलग तरह की फिल्में करना चाहता था। इसलिये ही वो ऐसे फ़िल्म निर्देशको के जाल में फंस गया।
मैं समझ सकता हूँ सुशांत फ़िल्मों की दुनियाँ के लिए कम अनुभवी थे । मुझे नही पता उनके इर्दगिर्द कौन लोग थे लेकिन जो भी थे वो काबिल नही थे यह पक्का है। हमारी फ़िल्म नगरी की सबसे बड़ी समस्या यस मैन और यस वुमन की है। वो सितारों को यह नही बताते उनके लिए सही क्या गलत क्या है। उन्हें लगता है हमने यस sir नही कहा तो नोकरी भी जा सकती है ।
उनके इर्दगिर्द जो समझदार लोग थे उन्होंने सुशांत को सही सलाह दी होती तो उन्हें बचाया जा सकता था। आइए अब उन फिल्मों पर नज़र डालते है जो वो कर रहे थे।
पहली फ़िल्म का नाम है "चंदा मामा दूर के" निर्देशक संजय पूरन सिंह चौहान, 2010 में लाहौर आयी थी उनकी, जिसे राष्ट्रीय पुरस्कार मिला था अच्छी फिल्म थी।जितनी बड़ी फिल्म थी उतनी ही सफलता उसे मिली थी। इस निर्देशक की पीआर समझ इतनी जबरदस्त है वो ऐसी घोषणा करते है कोई न कोई मुख्य मीडिया उनको बड़े बड़े हैडिंग के साथ छाप ही देता है। आप 2010 से हर साल उनकी कवरेज गूगल देवता में सर्च कर सकते है।
मैं कुछ प्रकाश डालता हूँ। एक साइंस फिक्शन फ़िल्म नाम पता चलते ही बताया जायेगा, संजय गाँधी पर फ़िल्म, भारत पाकिस्तान रिश्तों पर फ़िल्म पाकिस्तानी अभिनेत्री महरीन सईद को साइन किया गया, इस फ़िल्म में भारत पाकिस्तान बांग्लादेश के सितारे काम करेंगे,साइंस फिक्शन फ़िल्म के लिये हॉलीवुड के स्पेशल इफेक्ट डायरेक्टर जॉन पाल्मार को साइन किया गया।
मुझे यह सारी जानकारी एनडीटीवी इण्डिया के मनोरंजन जगत कार्यक्रम से मिली। सारी नकली घोषणा एक ही टीवी के एक ही प्रोग्राम में यह भी मुझे चौकाता है।
जब यह लेख लिखते समय 10 मिनट के रिसर्च से मैं यह सब तलाश कर सकता हूँ तो क्या सुशांत सिंह या उनकी टीम ने चंदामामा दूर के साइन करने से पहले संजय पर आर एन डी क्यों नही की। यदि करते तो समझ आ जाता कि यह फ़िल्म नही बननी थी उनकी अन्य फिल्मों की तरह। संजय ने सुशांत को क्या सपने दिखाए मुझे नही पता लेकिन उनके मैनेजर पी आर टीम आदि क्या कर रहे थे।
फ़िल्म दुनियाँ और मुम्बई से दूर हो जाने के कारण मेरी नजर चंदामामा दूर के पर नही पड़ी वरना मैं कुछ नही तो सोशल मीडिया पर पोस्ट करता ही। मुझे संजय की प्रतिभा पर कोई शक नही है लाहौर जैसी नॉन स्टारकास्ट फ़िल्म को सफल बनाकर अवार्ड जीतना आसान बात नही है फ़िल्म की तारीफ भी बहुत हुई थी। लेकिन उसके बाद क्या, सिर्फ घोषणाएं और मीडिया कवरेज।
लाहौर सफल फ़िल्म थी उस फिल्म के निर्माता के साथ ही फ़िल्म बना लेते। संजय को मेरी सलाह है कि फ़िल्म उद्योग में अनुराग कश्यप, तिग्मांशु धूलिया जैसे कमाल के निर्देशक है इन्हें महारत हासिल है कि इन्हें आप अभाव बजट फिल्मों का निर्देशन दे दीजिये यह कमाल की फ़िल्म बना देते है लेकिन जैसे ही 50/60/80 करोड़ की फ़िल्म बनाने को दे दी तो दिक्कत होती है।आप समझ ही गये होंगे मैं क्या कहना चाहता हूँ।
आप 10 साल में एक सफल फ़िल्म के बाद दूसरी फिल्म नही बना पाते तो कही तो कमी आप में है ही। अब यह मत कह दीजियेगा कि मुम्बई गैंग ने आपको आगे बढ़ने ही नही दिया।
तो सुशांत के सपनों को तोड़ने की जिम्मेदारी संजय की भी है। अब आप लाहौर जैसी दूसरी फिल्म बनाये और सुशांत को समर्पित कर दे।
अगला नाम मैं लेना चाहूँगा शेखर कपूर का सबसे ज्यादा चोट यदि किसी ने मारी है तो वो मारी है शेखर कपूर ने। जब वो दे ट्वीट दे ट्वीट करें पड़े थे तो मुझे लगा यार कितना बड़ा हितैषी है यह व्यक्ति सुशांत का। लेकिन एक नये बच्चे को कैसे शेखर ने अपने मोहपाश में जकड़ा होगा यह उनकी काबिलियत भी है।
पानी नही भाई मैं लिखते हुए थका नही हूँ जो पानी माँग रहा हूँ यह एक बीस साल पुरानी फ़िल्म है यदि 20 साल पहले बन जाती तो सुशांत पानी का सपना देखने से बच जाते।
मेरी याददाश्त यदि सही है तो सबसे पहले शेखर कपूर पानी जवान रही प्रीति जिंटा के साथ बनाना चाहते थे तब से कितना पानी बह गया। मैं कहीं पढ़ रहा था वो फ़िल्म में दिखायेंगे 2025 में पानी की क्या स्थिति होगी।
मैं जब पिथौरागढ़ में था 1987/88 में तो पानीविध राजेन्द्र सिंह शायद यही नाम है उनका एक लेख पढ़ रहा था उस समय, कटिंग भी रखी होगी कही, पूरे पेज में उन्होंने चिन्ता जाहिर की थी अगले 20 साल में अपने देश से पानी खत्म हो जायेगा और हम त्राहि त्राहि करेंगे। मुझे उस समय भी लगता था कि क्या हम पानी के लिए कुछ नही करेंगे जो करेगा पानी ही करेगा।
32 साल हो गये हमनें बहुत कुछ तो नही किया लेकिन प्रकृति ने अधिकतर हमें समृद्ध ही रखा।
जब पानी 20 साल से बन रही है तो सुशांत को उनकी टीम को सोचना चाहिये था निर्माता कहाँ है। शेखर ने बेशक तीन बेहतरीन फ़िल्म बनाई है लेकिन एक बच्चा आपकी न बनने वाली फिल्म के लिए अपने बेशकीमती दो साल बर्बाद कर देता है और आप कहते है मेरे कंधे पर सिर रख कर रोया था सुशांत उसका दर्द मैं जानता हूँ ।
दो साल की पूरी तारीखें ले ली आपने, शेखर कपूर फ़िल्म के लिए यदि किसी या बहुत से निर्माताओं ने अपने कदम वापस खींच लिये तो कमी आप में है आपकी कहानी में है । प्रिटी जिंटा या सुशांत सिंह में नही। समझते है किसी प्रतिभाशाली कलाकार के दो साल और अनगिनत सपनो को तोड़ने के अपराध की सजा क्या होनी चाहिये।
और आप ट्वीटर ट्विटर खेलकर बकवास कर रहे है कि कोई आप पर उंगली न उठा दे। शेखर ने कहा जब निर्माता ने पानी के लिए कहा कि हम सुशांत के साथ फ़िल्म नही कर सकते तो सुशांत रोया और मैं भी, फिर मैं उसके साथ दूसरी फिल्म बनाना चाहता था लेकिन नही बना पाया तो अपसेट होकर विदेश चला गया।
इसका सीधा मतलब है कि आपने सुशांत को पहले फुसलाया उसकी सफलता को केश करने के लिए उसे तैयार किया स्वाभाविक है शेखर निर्देशन करेंगे तो बिग बजट फ़िल्म होगी। लेकिन निर्माता ने मना कर दिया। तो मान्यवर पहले आप पानी के लिए निर्माता को तैयार करते फिर उनसे सलाह लेकर हीरो साइन करते। कमी आप में है सुशांत में नही।
चलिये आप अब बनाकर दिखा दीजिये पानी, निर्माता तो तैयार है ना आपके साथ, दिक्कत हीरो की है लाइए बड़ा हीरो और बनाइये अपना ड्रीम प्रोजेक्ट और सुशांत को समर्पित कीजिये।
मुझे पक्का नही पता लेकिन सब जगह खबर है कि आपकी नसुडी फ़िल्म के लिए सुशांत ने संजय लीला भंसाली की फ़िल्म को तारीखों के चलते न कर दिया था यदि यह सच है तो मुझे नही पता आप सो भी कैसे पाते होंगे। सुशांत तो बिल्कुल नही सो पाता होगा । इतनी बड़ी फिल्म जिसका पक्का पता था कि बहुत बड़ी रिलीज होगी । आपको दी गई 2 साल की date के कारण निकल गई अन्य भी कम से कम 5 फिल्में तो उसके हाथ से निकली ही होंगी।
आपसे गुज़ारिश है अपने घड़याली आंसू बहाना बन्द कीजिये और यह सोचिये कि आप सुशांत की आत्मा का कर्ज कैसे चुकायेंगे।
मैं सुशांत की अगली फिल्म की बात करू उससे पहले मैं यह जानना चाहता हूँ वो कौन सी 7 फिल्में है जो सुशांत सिंह के हाथ से निकल गई जिनकी वजह से वो बहुत परेशान था । मैंने बहुत कोशिश की गूगल पर यूट्यूब पर दो तीन घण्टे खराब किये कहानी ज्ञान आदि तो बहुत मिले लेकिन वो 7 नाम नही मिले। किसी को मिले तो कृपया बताये। किस योजना के तहत यह 7 फिल्मों की कहानी गड़ी गई मुझे नही पता लेकिन इन 7 फ़िल्मों की कहानियों ने सुशांत के चाहने वालो में खूब रोष भर दिया।
अब आगे चलते है फ़िल्म का नाम राइफल मैन निर्माण कम्पनी अबुदन्तिया एंटरटेनमेंट कहानी को लेकर विवाद फ़िल्म फिलहाल बन्द,
आनन्द गाँधी ने अपनी पहली फ़िल्म शिप ऑफ थीसिस रिलीज 2013 को लेकर बहुत प्रशंसा पाई थी। उन्होंने मीडिया को बताया वो पिछले तीन महीनों से सुशांत से लगातार मिल रहे थे कहानी स्क्रिप्ट पर चर्चा कर रहे थे। फिल्म एमरजेंसी की कहानी उन्हें बहुत पसन्द थी।
आनन्द बहुत कुछ कर रहे है लेकिन बुरा न लगे तो यदि आपकी उपलब्धियों को जानने के लिए गूगल खंगालना पड़े तो आप अभी बहुत अधूरे है। 2013 के बाद आप कोई फीचर फिल्म ही डायरेक्ट नही कर पाये। आपने कहा यह कर रहे है वो कर रहे और न जाने क्या क्या कर रहे है मेरे भाई निर्माता कौन है। वो अमरीकन कम्पनी कौन सी है।
ऐसे तो मैं भी चार फ़िल्म लिख रहा हूँ मैं भी कह देता हूँ जिसके निर्माता हॉलीवुड की बड़ी कम्पनी है। लेकिन कौन सी लोग पूछेंगे ना।
आप यदि 2013 में एक चर्चित फिल्म बनाकर चर्चा में आये थे तो खुद को साबित करने के लिए एक फ़िल्म तो निर्देशित करनी थी । चलिये अब बता दीजिए किसके साथ बना रहे है हीरो कौन है निर्माता कौन है आप हमारी और अपनी तसल्ली के लिये कह सकते है कि निर्माता भी आप ही है तो सात साल में क्यो नही हो पाए।
सुशांत अपने मित्र और पार्टनर वरुण माथुर के साथ एक 12 पार्ट की सीरीज बना रहे थे जिसमें चाणक्य से लेकर अब्दुल कलाम तक नजर आते लेकिन वो भी हवा में ही थी, अख़बार की खबर सही माने तो उसका भी भविष्य निश्चित नही था।
संजय लीला भंसाली ने कहा,कहा या नही मुझे नही पता कि मैंने सुशांत को चार फिल्में offer की थी। मैं मानता हूँ चलो एक ही की हो तो भी वो इन सब फिल्मों पर भारी ही होती। रिलीज भी होती और हिट होने की संभावना भी अधिक होती।
एक बात तो निश्चित मान लीजिये फ़िल्म उद्योग में जीतने वाले घोड़े पर बड़े से बड़ा तुर्रम खाँ भी दाँव लगाने से नही रोक सकता और सुशांत वैसा ही घोड़ा था। तीन चार हिट फिल्म देने के बाद हमारे यहाँ हीरो 10 साल तक अपनी जगह पक्की कर लेता है। उसे फ़िल्मों की कोई कमी नही होती यह उसको सोचना है कि उस सफलता को कैश करना है या सफलता के नशे में चूर होकर बर्बाद होना है।
हर जगह पढ़ रहा हूँ कि फ़िल्म उद्योग के कुछ नामचीन लोगो ने सुशांत का कैरियर बर्बाद कर दिया। मुझे बड़ी हंसी आती है इन बचकानी बातों पर। यहाँ सबको अपना कैरियर बचाने की चिन्ता होती है किसी के पास इतनी फुर्सत नही होती कि वो दूसरे के फटे में पैर डाले। आप बुद्धि से सोचे सलमान खान या शाहरुख खान की सुशांत सिंह से क्या तुलना। सुशांत से इनको यहाँ तक कि रणबीर सिंह या रणबीर कपूर को भी क्या खतरा।
Favoritism और Nepotism यह दो वजनदार शब्द भी बहुत चर्चा में है इन दिनों, इन दो शब्दों के साथ दो शब्द और जोड़ देते है समझने में आसानी होगी। Comfortable और behavior,
F N और C का गहरा रिश्ता है आपस मे। उदाहरण के तौर पर आलिया भट्ट की बात करते है महेश भट्ट की बेटी, करण जौहर ने फ़िल्म बनाई दो नये हीरो थे सिद्धार्थ मल्हौत्रा और वरुण धवन नई हीरोइन आलिया। फ़िल्म तो पता ही है आप लोगों को स्टूडेंट ऑफ दी ईयर 2012,
क्या लगता है आप लोगो को आसान बात थी यह फ़िल्म बनाना, आप कह सकते है हाँ आसान था। मैं कहता हूँ बहुत कठिन लेकिन करण जौहर का अनुभव और अभिनेताओं के नाम पर बन्द मुठ्ठी। करण जौहर ने जुआ खेला और जीत गये, हार भी सकते थे हार का प्रतिशत बहुत अधिक था।
अब करण को किस श्रेणी में रखेंगे आप। Favoritism मान लेते है Nepotism वो भी मान लेते है । लेकिन इस फ़िल्म के बाद करण यदि इनके साथ फ़िल्म बनाते है तो वो होगा Comfortable साथ ही behavior तो उनका अच्छा होगा ही क्योंकि जो भी आज वो तीनों है करण की वजह से ही है।
वैसे आपकी जानकारी के लिए बता दूं नेटफ्लिक्स पर हाल ही में release हुई फ़िल्म Drive सुशांत सिंह की सबसे घटिया फ़िल्म है इतना सुलझा हुआ लड़का इतनी बचकानी और वाहियात फ़िल्म कैसे sign कर सकता है और इस फ़िल्म के निर्माता करण जौहर है वो कैसे धर्मा प्रोडक्शन के बैनर में इतनी बुरी फ़िल्म बना सकते है जिसे 15 मिनट भी झेलना दुष्कर है।वैसे इससे पहले करण ने कलंक बनाकर भी धर्मा और खुद पर कलंक लगवा ही लिया है।
मैं हरेक फ़िल्म में कोई खूबी निकाल कर खुद को नकारात्मकता से बचाने की कोशिश करता हूँ लेकिन Drive ने मुझे एक क्षण को भी ड्राइव नही किया। फिर नेटफ्लिक्स भी कैसे इतनी बकवास फ़िल्म अपने नेटवर्क पर पेश कर सकता है । इस फ़िल्म को देखकर मुझे लगता है यह फ़िल्म जानबूझकर तो घटिया नही बनाई गई। वजह मत पूछियेगा लेकिन यदि जानबूझकर घटिया बनाई गई तो इतना जान लीजिये कि सुशांत को यह बात पता थी।
अब आगे - आप जान लीजिये करण को ही नही किसी भी निर्माता को ख़ुशबू आ जाये कि आलिया या सुशांत को लेकर फ़िल्म बनाने से भरपूर पैसा आयेगा तो कोई कुछ भी कहता रहे निर्माता को कोई नही रोक सकता। सुशांत उस श्रेणी में पहुँच चुके थे।
फ़िल्म उद्योग में हर किसी के लिए जगह है आप उसमें किस होशियारी और भाग्य के सहारे खुद को फिट कर पाते है यह समझ होना बहुत जरूरी है। लेकिन यदि आप सफल नही हुए तो दूध में पड़ी मख्खी की तरह निकालने में भी यहाँ देर नही लगती। आपको अपनी लड़ाई खुद लड़नी पड़ती है आप किसी दूसरे पर अपनी तसल्ली के लिए आरोप लगाकर संतुष्ट हो सकते है लेकिन सच्चाई आप जानते है।
सुशांत को 10 साल तक चिन्ता की कोई जरूरत नही थी लेकिन मुझे लगता है पिछले दो तीन वर्षों में उन्होंने खुद लीक से हटकर फिल्में साइन की थी जो यदि बनती तो शायद उनका वो सपना पूरा होता जो उन्होंने देखा था। अपने आप को मुख्यधारा की फिल्मों से अलग फिल्मों का हीरो साबित करना, लेकिन उन्हें जब लगा होगा कि जो फिल्में उन्होंने साइन की है वो तो बनने वाली है नही तो चिन्ता होना स्वाभाविक है।
यह हो सकता है कि सुशांत ने इन न बनने वाली फिल्मों की खातिर भंसाली को मना किया हो दो तीन और बड़े निर्माताओं को मना किया हो ऐसे में संभव है अन्य निर्माताओं और कॉरपोरेट हाउस ने सोच लिया हो कि जब यह भंसाली यशराज को मना कर रहा है तो इसे फिल्में नही करनी है और तब समस्या होती है ईगो की । फ़िल्म निर्माता आपसे दूर होने लगते है। आप इसलिये नही जाते कि आपके पास तो फिल्में है ही।
यदि यह फिल्में नही बन रही थी तब भी कोई समस्या नही थी आपको अपने पीआर के द्वारा सिर्फ तीन चार मुख्य अखबारों में इंटरव्यू देने थे कि मेरी डेट अभी खाली हो गई है जिन फ़िल्मों को मैंने डेट दी थी उन फ़िल्मों को बनने में देर है। यकीन मानिये जो मुकाम सुशांत ने बना लिया था उससे उसे कुछ बड़ी फिल्में मिलती ही मिलती बशर्ते उन्होंने छिछोरे फ़िल्म के बाद अपनी फीस अनाप शनाप न बड़ा दी हो।
वो सफल तो थे लेकिन इतने नही कि बड़े बैनर उनकी मन मुताबिक फीस देते। बड़ा बैनर कम फीस छोटा बैनर अधिक फीस वाली स्थिति में थे सुशांत। बड़े निर्देशक की एक दो फिल्में और हिट होती तो वो किसी भी बैनर की फ़िल्म अपनी मर्जी की फीस और सहूलियत से कर सकते थे।
मैं यह मानने को तैयार नही हूँ कि सुशांत के पास फिल्में नही थी या कोई आर्थिक समस्या थी या उनको फिल्मों के प्रस्ताव नही मिल रहे होंगे आज ही मैंने पढ़ा उनके पास एक वेब सीरीज का प्रस्ताव था 14 करोड़ रुपये का। न बनने वाली फिल्मों से तो उनका थोड़ा समय ही खराब हुआ होगा और कुछ नही। हाँ मन मुताबिक फिल्में न बनने से मायूसी जरूर आई होगी।
फिर क्या वजह हो सकती है इतना बड़ा कदम उठाने की, क्या प्यार वो वजह थी इतना कमजोर नही लगता सुशांत मुझे, ड्रग के किस्से तो हम आये दिन पढ़ते ही है लेकिन सुशांत की मासूमियत देखकर लगता नही कि वो ड्रग लेते होंगे।
कोई सुसाइड नोट मिला नही है। शायद मोबाइल से कोई जानकारी मिले, उनके कम्प्यूटर लेपटॉप को भी खगालना चाहिये सम्भव है कोई उनकी लिखी चिठ्ठी ड्राफ्ट में पड़ी हो।
मेरे सहित बहुत से लोग भविष्य में करने वाले काम लिखकर ड्राफ्ट में छोड़ देते है। यदि वहाँ कुछ नही मिलता तो सुशांत की खुदकुशी के कारण का पता चलना बहुत मुश्किल है। खासकर उन कारणों को तो भूल ही जाए जो आपके कान सुनना ओर आँखे देखना चाहती है।
कल पढ़ रहा था किसी वकील साहब ने 7 लोगों पर मुकदमा दायर कर दिया है बिहार में कही कि फ़िल्म सितारों और निर्माता कम्पनियों के कारण सुशांत ने खुदकुशी कर ली। सरकार और अदालतों को इस परम्परा पर अंकुश लगाना चाहिये जब केस स्थानीय पुलिस के जाँच दायरे में है उनके निर्णय आने का इंतजार करना चाहिए ऐसा मुझे लगता है।
कुछ लोगो को लग सकता है कि दुनियाँ जिसका विरोध कर रही है मैं उसका सहयोग कर रहा हूँ तो जान लीजिए करण और भंसाली से मैं आज तक नही मिला, सलमान शाहरुख से मिले हुए दस पंद्रह साल हो गये है। सामने पड़ जाऊं तो पहचानेंगे भी नही। मैं वही लिख रहा हूँ जो मेरा 20 वर्ष का अनुभव मुझसे लिखा रहा है।
मेरी प्रकाशित होने वाली किताब के कुछ अंश।
हरीश शर्मा
Success and Failure are part of life ,We, the ordinary beings have more failures than success in our kitty ! I fail to understand that when a youth enters into a highly brittle and uncertain profession of films ,knowing fully well the pros & cons and also the people all around can take such an extreme step ! The race was not over yet ,the whole life was in front with good people and good future prospects! Expect and accept are two contradictory terms in life ,choosing the latter gives strength whereas nonfulfillment of expectations culminate into frustration । Buying a plot on the moon is just like living in a Fool's Paradise !High Education does not always produce wisdom which comes from experience which is garnered even by an illiterate ! Not being against ,I have full sympathies for Sushant ,My view is that if you make friends with your father then you don't require anyone else beside you for any advice ! The problem with the new generation these days is that they consider their parents to be underscored,If there is lack of communication with elders such incidents are bound to occur !
ReplyDeleteVery well written dear Harish! Congratulations and best wishes for your upcoming book !
Biggest problem is lack of communication you are absolutely right jyoti ji
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