Monday, March 3, 2025

अजपथों से हिमशिखरों तक


अजपथों से हिमशिखरों तक - ललित पंत 

आमतौर पर मैं किताबों की समीक्षा नहीं करता क्योंकि मुझे लगता है लेखक जब कोई किताब लिखता है तो उसके कई साल अनुभव, मेहनत, समझ लगती है। किताब यदि ललित पंत जैसे अर्थशास्त्री जिन्हें बेहतर समाज शास्त्री कहा जाएं साथ ही कठिन यात्राओं के पथारोही लिखे तो मेरे जैसे अदने से लेखक का उनकी किताब पर कुछ लिखना कहना छोटा मुंह और बड़ी बात होगी।

तब भी लिख रहा हूं कह रहा हूं क्योंकि वो मेरे प्रिय दादा है पहाड़ों में क्या कई जगह बड़े भाई या बड़ों को सम्मान स्वरूप दादा कहा जाता है।

ललित दा को मै 1987 से जानता हूं उनसे मिलना बातें करना हमेशा बहुत कुछ सीखना ही है। पिथौरागढ़ कुमाऊं या घुमक्कड़ी को जानना सीखना है तो उनसे बेहतर कोई नहीं और उस घुमक्कड़ी को किताब, डॉक्युमेंट्री लेख में तब्दील करना है तो उनके लिखे को पढ़ लो या मिल कर बतियां लो तो समझो कुछ तो लिखना सीख ही जाओगे।

उनकी किताब “अजपथों से हिमशिखरों तक” ऐसी अद्भुत किताब है जिसे पढ़कर आप वो सारी यात्राएं कर आते है जिसका जिक्र इस किताब में है । इस किताब की सबसे बड़ी खूबी यह है जो लोग उत्कृष्ट हिंदी पढ़ना लिखना भूल गए है उन्हें यह किताब हिन्दी सीखा देगी। 

पहाड़ों से प्रकृति से प्यार तो सभी को होता है। यह किताब पढ़कर निश्चित मानिए आप अगली गर्मियों में आदि कैलास जरूर जायेंगे। दा ने जो किताब लिखी है वो आदि कैलास तक पैदल चलने की दास्तान है। जिसमें हम चलते हुए रास्ते और गाँव के लोगो से मिलते है । खानपान संस्कृति त्यौहार इतिहास इन जगहों का अर्थतंत्र प्राचीन और वर्तमान समय के किस्से कहानियां सब साथ साथ चलते है। 

शूटिंग के बाद जब ललित दा से पिथौरागढ़ में मिला अपनी फिल्म के लिए उनका इंटरव्यू किया यह किताब उपहार में पाई तब लगा डॉक्युमेंट्री सिरे से लगेगी। उनकी इजाज़त से डॉक्यूमेंट्री अब उनके इंटरव्यू से ही रफ्तार पकड़ेगी।

किताब में कहने को तीन यात्राएं है लेकिन पढ़ते समय आप साक्षात खुद को वहां पाते है जो पढ़ रहे है। 

सबसे पहले छोटा कैलास की यात्रा है मोटर मार्ग से पिथौरागढ़ से धारचूला 35 साल पहले भी जाते थे आज भी जाते है।  लेकिन यह किताब साथ रखेंगे तो आपकी घुमक्कड़ी का मिजाज़ ही बदल जायेगा । आपको लगेगा आपको बहुत कुछ पता है इससे देखने का नज़रिया आपको बेहतर सीख देगा। 

शौकाओं वनराउत की पीड़ा को इस किताब के माध्यम से अंदर तक महसूस किया जा सकता है। तवाघाट से लिपुलेख तक के सफर को दा की एक पंक्ति से समझा जा सकता है । वो लिखते है सच जाने तो इस हिस्से के शौका आदिम समाज की पूरी अर्थचर्या व प्रवासी जीवन की रीति इसी लीपू मार्ग पर टिकी थी।

पूरी यात्रा ऐसे छोटे किस्से कहानियों से भरी है जिसमें आप छोटी सी चाय की दुकान का जिक्र भी पाएंगे तो स्कन्द पुराण में लिखें विवरण भी बहुतायत से है । वनराउत पर उनके लिखे ने मेरी इस दुर्लभतम आदिम जाति पर डॉक्यूमेंट्री बनाने की जिज्ञासा बड़ा दी है।

जौलजीबी गोरी और काली नदी का संगम स्थल है इतनी छोटी सी बड़ी बात की जानकारी इसी किताब से मिलेगी। ये भी कि काली को ही महाकाली या शारदा नदी भी कहा जाता है। इसलिए जब आदि कैलास जाएं तो यह किताब बगल में होना चाहिए।

इसी किताब से पता चला कि स्कन्द पुराण के मानस खण्ड में कैलास मानसरोवर जाने का हजारों साल से यही परम्परागत मार्ग है। धारचूला तवाघाट ठाड़ीधार और चौदांस इलाके में प्रवेश होता है। 

चौदह गांवों से मिलकर बना चौदास के लिए क्या खूब लिखा है यह भूमि शिव की क्रीड़ास्थली रही है और शिव के चौदह डमरूओं के चौदह निनाद ध्वनित होते है। 

किताब में चौदास का खूबसूरत विवरण है। वो लिखते है यहां से काफी संख्या में लोग धारचूला पिथौरागढ़ हल्द्वानी व अन्य महानगरों की ओर पलायन कर गए है। लेकिन क्या सड़क मार्ग ने पलायन रोका है इसकी जिज्ञासा मेरे मन में है। 

सेब की बनी हल्की मादक चयव्क्ति का जिक्र भी कई बार है शायद कठिन बर्फीले मौसम के कारण स्थानीय लोगो ने इस पेय को ईजाद किया होगा। 

कश्मीर के बक्करवाल हिमाचल के गद्दियों की भांति उत्तराखंड के भेड़पालक यानि अणवालों की अद्भुत कहानी इस किताब का रोचक हिस्सा है । पिछड़े समाजों के उत्थान के लिए योजनाएं तो बहुत है लेकिन अणवाल समुदाय का इससे वंचित रह जाना निश्चित ही सामाजिक न्याय की दृष्टि से गम्भीर चिन्ता का विषय है। 

एक पथिक जिसको सिर्फ अपनी यात्रा लिखना चाहिए यदि वो समाज के लिए इतना जागरुक होगा तो निश्चित ही उनकी बात आज नहीं तो कल उत्तराखंड सरकार तक पहुंचेगी। उनके लेखन से इस पीड़ा को समझा जा सकता है।

ललित दा लिखते है तिथलाकोट से समरी पहुंच कर हमने खूब खिचड़ी खाई। इस आंचलिक केन्द्र में एक सहज अपनापन मिलता है । ठंडा पानी,चाय, छोले और लोगों में निपट पहाड़ीपन भी।

जब कभी मौसम के चलते ये घुमक्कड़ अपने गंतव्य तक नहीं पहुंच पाते तब इनके रुकने खाने के लिए सैनिक पड़ाव मदद करते ऐसा कई जगह किताब में विवरण है।एक वाक्य से इसे समझा जा सकता है। ललित दा लिखते है सकून इस बात का है  हमारे सैन्य बल के लोग मानवीय संवेदनाएं रखते है और किसी भी सीमा तक जरूरतमंदो की सहायता करते है।

मालपा के विषय में ललित दा लिखते है ब्यांस की ओर जाने वाले या चौदांस की ओर लौटते पथिको का यह विश्राम स्थल था। भोजन जलपान व आवास की ठीकठाक सुविधाएं यहां उपलब्ध थी और थके हारे यात्री इसका सुख भोग करते थे।

लेकिन 18 अगस्त 1998 की मध्यरात्रि थी तेज वर्षा के कारण भू गुरुत्वाकर्षण में असंतुलन से पर्वत शिखर में पड़ी दरारें फैली ओर बहुत बड़े पत्थर का पहाड़ दरका। भारी बोल्डर कंकड़ पत्थरों के विशालकाय मलवे ने मालपा को जमींदोज कर दिया तथा पूरी बसासत को क्षत विक्षत कर मलवा काली नदी के तेज प्रवाह तक पहुंचा और इस हजारों टन मलवे के तले कैलास मानसरोवर के 60 यात्री समेत कुल 210 लोग काल के गाल में समा गये।

अभी जब हम अपनी डॉक्युमेंट्री के लिए मालपा पहुंचे तो पता चला एक यात्री उनमें से जीवित है जिसकी तलाश हमें है।

ललित दा लिखते है प्रकृति का ऐसा विंध्स्व मालपा पड़ाव स्थल अब मानचित्र से गायब है। पूरी घाटी के लोग इस त्रासदी से विक्षिप्ता की अवस्था में मौन थे। एक गहरा दर्द था संताप था पूरे वातावरण में।

बूंदी से गर्ब्यांग के बीच छियालेख के मैदान का जो विवरण लिखा गया है लगता है मोटर मार्ग से जाने पर भी यहां जाना चाहिए। ललित दा लिखते है छियालेख जैसे मनोहारी बुग्याल ही प्राकृतिक रूप से प्रकृति के साथ तादात्म  स्थपित कराते है जो हमारे लिए प्रेरणास्रोत है और उन हजारों हजार प्रकृति प्रेमियों शान्ति के खोजियों तीर्थयात्रियों पर्वतारोहियों व पथारोहियों के भी जो हिमालय के दुर्गम अंतर्वर्ती क्षेत्रों में पहुंच उसके सौन्दर्य व नाजुक पारिस्थितिकीय तन्त्र को चिर अक्षुण बनाए रखने की सोच रखते है। 

गर्ब्यांग गांव के विषय में इस किताब में जितना बेहतरीन लिखा गया है शायद ही कही ओर लिखा गया होगा। अभी भी 40 परिवार 10/15 फीट बर्फ के बाद भी जीवन यापन के लिए मजबूर है । स्वाभाविक है सड़क मार्ग बनने के बाद सुविधाएं बढी है तो यह दिक्कत अब कम हुई होगी।

गर्ब्यांग से गुंजी गांव आने के बाद नदी तल से 100 गज ऊपर है। पूर्व की और मान्येला का मैदान और ऊंची पहाड़ी में व्यास मन्दिर है स्थानीय लोगों का मानना है महर्षि व्यास इस स्थल पर प्रवास में रहे बाद में इसी घाटी की व्यास गुफा में रहे। इसी का जिक्र मानस खण्ड में है।

काला पानी का हल्ला पिछले कुछ सालों में मीडिया और राजनीतिक चर्चा में रहा है दा लिखते है इस सीमावर्ती क्षेत्र को देखकर विचार उठता है हमारी राजनैतिक विचार दृष्टि के ताने बाने में, हमारी विदेश नीतियों कूट नीतियों की घेराबन्दी में जीवन का बहता यह सतत प्रवाह अवरुद्ध नहीं होना चाहिए। काला पानी विवाद पर दा ने बहुत सुन्दर लिखा है। 

पथारोहण के अनुसार लिपुलेख पहले पड़ता है जबकि हम मोटर मार्ग से गए तो पहले गुंजी पड़ता है टी प्वाइंट से दाएं गए तो करीब 1घंटे के उबड़ खाबड़ मार्ग पर चलते ॐ पर्वत पहुंचते है । 

ॐ पर्वत दृश्यावलोकन से बाएं लिपुलेख मोटर मार्ग है जिस पर करीब 40 मिनट बाद कैलास मानसरोवर वाले कैलास पर्वत को साक्षात देखा जा सकता है। 

व्यास मन्दिर में दो सांप मिलते है जो हमें देखने को मिले । इससे आगे गुंजी के हरेक पहलु को ललित दा ने विस्तृत लेखनी दी है। 

गुंजी से कुटी के बीच गांव नाबी का अद्भुत विवरण दिया गया है उन्होंने कालीन बुनाई का विवरण ऐसा दिया है पढ़ते हुए महसूस करेंगे आप खुद उस बुनाई का हिस्सा है। इसी क्रम में अमृता प्रीतम के लेख को तारतम्यता दी है।

नाबी गांव से एक कठिन दर्रे के द्वारा बुदी पहुंचा जा सकता है। किताब की खुबसूरती है सीधे चलते हुए अचानक ऐसा यू टर्न लेते है दा कि किताब रहस्यमय हो जाती है। किस्से कहानियों चढ़ाव उतराव के बीच में हांफते हुए व्यक्ति अपनी सांसों को व्यवस्थित करेगा या ऐसे में भी कहानी पिरोएगा। 

हर हिस्से में प्रकृति के विवरण को पढ़कर आमतौर पर बोरियत होती है लेकिन इस किताब में ऐसा कोई स्कोप है नहीं। आप सोच रहे होंगे जब कोई समीक्षा लिखी जाती है तो कमियां भी तो लिखी जाती है। 

तो मैं कमियां भी लिख देता हूं यह किताब किसी डिजिटल प्लेटफार्म पर उपलब्ध नहीं है इतनी बेहतरीन किताब का लोगो के लिए उपलब्ध न होना इस किताब की सबसे बड़ी खामी है। इसकी शिकायत मैंने की है। यह किताब ऐसी है कि जो भी आदि कैलास जाए यदि उसको उपलब्ध हो तो मोटर मार्ग में पड़ने वाले गांवों में भी वो जरूर जायेगा। उन गांवों को समृद्ध करेगा। 

सरल पहाड़ी लोग जब कुछ कहो जैसे दा ने कहा अरे हरीश सब ठीक ही ठहरा। करते है कुछ, जो किताब किसी बड़े पब्लिकेशन हाउस से आराम से प्रकाशित हो सकती थी हो सकती है उसे दा ने अपने प्रयासों से प्रकाशित कर दी और इतने भर से उत्तराखण्ड सरकार ने उन्हे उत्तराखण्ड गौरव सम्मान से सम्मानित किया। 

अब मैं उनकी इस अद्भुत किताब को किसी बड़े पब्लिकेशन हाउस से प्रकाशित कराने का संकल्प लिया हूं ।

अब आगे --

कुटी की शान्ति कुटियाल जिन्होंने संकल्प लिया कि अपने जीते जी ज्योलिकांग पार्वती सरोवर छोटा कैलास को एक धार्मिक पर्यटन स्थल के रूप में स्थापित करके रहेंगी।जो मन्दिर पार्वती सरोवर पर स्थित है उसका निर्माण उन्होंने ही गांव की अन्य महिलाओ के सहयोग से 1972 में स्थापित कराया था।

मुझे नहीं पता शान्ति कुटियाल है या नहीं यदि है तो उन्हें खुशी होगी कि उनकी इच्छा पूर्ण हुई। प्रधानमंत्री मोदी के आदि कैलास आने के बाद उनके इस धार्मिक पर्यटकों की संख्या लाखों में पहुंच चुकी है। 

कुटी का पाण्डव किला कुन्ती शीला उसकी कहानियां जानने के लिए किताब पढ़िए किताब लेकर कुटी की यात्रा करे जो अब मई में शुरू होगी। ज्या पीजिए या च्यक्ती उसकी पूरी कहानी किताब से मिलेगी। प्राचीन निकर्चु व्यापारिक मंडी का इतिहास मिलेगा।

पार्वती ताल आदि कैलास की बात करते करते 1964 की मंगस्याधुरा की सच्ची कहानी अद्भुत है। मंगस्याधुरा टॉप से कैलास मानसरोवर दर्शन का किस्सा पढ़ते आश्चर्य मिश्रित रोंगटे खड़े हो जाते है। किसे पता था 1964 का वो किस्सा 2024 में वास्तव में सच हो जायेगा। 

किताब को पढ़ते संजोते नोट्स बनाते एक आवाज आई ललित दा से शिकायत रहती थी हमेशा उनसे कहता था दा आपके पास इतना कुछ देने को है आप देरी क्यों कर रहे है हमेशा लगता रहा वो आलसी है या उम्र और पारिवारिक विपदाओं का असर उन्हें दरका रहा है । लेकिन इस किताब को पढ़ने के बाद इतना निश्चित है ये कालजई लेखन है । 

कोई एक किताब कैसे किसी को अमर कर सकती है वो परिश्रम इसमें दिखाई देता है। अभी भी उनके पास कम से कम 25 किताबों का भण्डार संजोया हुआ है। लेकिन अब कोई शिकायत नहीं। अपने कहे की माफी। इस तरह के लेखन परिश्रम का मैं तो सिर्फ सपना ही देख सकता हूं। 

मुझे याद आता है पत्नी मीनाक्षी और बेटी ईहा के साथ पहली बार पिथौरागढ़ गए तो दोनों को कुछ भी प्रभावित नहीं कर पाया लेकिन ललित दा के यहां बिताया बतियाया समय उन्हे आज भी याद है और उसे ही दोनों पिथौरागढ़ की उपलब्धि मानती है।

1950 दशक का जो विवरण किताब में है वो तिब्बत चीन भारत सम्बन्धों धंधों पर व्यापक प्रकाश डालती है। साथ ही भारतीय सीमांत प्रहरियों का अद्भुत संग साथ किस्से बेहद रुचिकर और शिष्टता लिए हुए है। 

इस यात्रा के सबसे कठिन मार्ग सिनला दर्रे को पार करना सबसे चुनौती पूर्ण था। पांच पथारोहियों की अद्भुत कहानी उनकी जिजीविषा हिम्मत, डगर दिमाग शरीर का सन्तुलन एक दूसरे के प्रति मान सम्मान स्नेह ही वो वजह थी जिनसे वो सफल हुए। मैं कई कठिन यात्राओं का पथारोही रहा हूं । 

कई बार सरल राहों में भी एक गलत कदम आपको हजारों फिट गहरी खाई में पहुंचा सकता है। ऐसे में कोई राह ही न हो तो जोखिम को मै समझ सकता हूं, शेखर पाठक दा का पथनायक होना किसी भी कठिन जोखिमों से भरी यात्रा को सरल और साहस पैदा करता है किताब को पढ़ते हुए समझा जा सकता है। 

किताब में सिनला दर्रे के आरपार की यात्रा सिहरन पैदा करती है वो लिखते है लगभग 11 बजे हम अन्ततः अथक जीवन शक्ति लगा सिनला गिरिद्वार में पहुंच गए। भीषण थकान सबके चेहरे पर अवश्य थी लेकिन समुद्र तल से18030 फिट की ऊंचाई पर पहुंचने की अनोखी चमक भी सबकी आंखों में थी। शेखर ने स्वागत में हाथ फैलाया और गहरी जादू की झप्पी दी। यह हमारी यात्रा का उच्चतम बिन्दु था। 

यात्रा का अन्त हुआ और तवाघाट से शुरू हुई यात्रा यहीं खत्म हुई लेकिन तब तक इतना कुछ  मानसपटल पर अमिट हो चुका था कि दा से आज भी बात करो तो वो जीवन्त हो उठते है एक बच्चे के माफिक। वो इस या किसी भी यात्रा पर घंटों बात कर सकते है और विशेषता ये कि हर बार वो ही बात आपको खास ही लगेगी। 

यह समीक्षा सिर्फ किताब की पहली यात्रा की है दो यात्राएं अभी बाकी है वो भी शीघ्र अभी तो कैलास मानसरोवर घूमिए।

हरीश शर्मा 

Friday, February 21, 2025

ओपनर्स - सलामी बल्लेबाज़ों की कहानी - शिवेन्द्र कुमार सिंह


ओपनर्स - सलामी बल्लेबाज़ों की कहानी 

शिवेन्द्र कुमार सिंह 

क्रिकेट को जीवन के शुरूआती 30 वर्ष दिए है। जब क्रिकेट की बात हो किताब हो और लेखक मित्र हो तो पढ़ने और परखने में मज़ा आता है। दोस्त को ही तो बताएंगे क्या अच्छा है क्या  बेहतर किया जा सकता है। 

किताब का cover बहुत रुचिकर है ऑस्टीन कुटिन्हों ने बहुत सुन्दर कैरीकेचर बनाए है। 

किताब अमेज़न से मंगाई। मुझे लगता है किताबें पैसे से ही मंगानी चाहिए। मैं खुद भी लेखक हूं तो कोई क़िताब बिकने के बाद जब उसकी जानकारी लेखक को मिलती है तो लेखक की हिम्मत बढ़ती है सुकून मिलता है। 

जब किताब खोली पन्ने पलटे तो अजीब से हल्के पीले पेज थे जब पढ़ना शुरू किया तो पहले पेज पर हेडिंग है पेंगुइन के साथ मिलाएं पर्यावरण से हाथ - हर पृष्ठ उत्कृष्ट 

दरअसल पर्यावरण की बेहतरी के लिये सभी पेज 100% रिसाइकिल कागज़ पर मुद्रित है। पेंगुइन को बधाई शुरुआत ऐसी ही होनी चाहिए अन्य लोगों को भी ये प्रेरणा मिलनी चाहिए। 

किताब के लेखक शिवेन्द्र महाकुम्भ नगरी प्रयागराज से है। उनके परिचय पेज से पता चलता है लिखने पढ़ने वाले लोग पत्रकार होते है या लेखक, शिवेन्द्र ने 20 वर्षों से अधिक समय तक क्रिकेट को ही लिखा जिया देस में भी बिदेस में भी। बीच बीच में ओलंपिक सहित अन्य खेलो पर भी टीवी पत्रकारिता जारी थी है। ये चौथी किताब है । 

शिवेन्द्र की जिजीविषा का अंदाज़ इससे लगाया जा सकता है 1998 में स्नातक होने के 20 वर्ष बाद 2018 में कुरुक्षेत्र विश्वविद्यालय से पत्रकारित में स्नातकोत्तर हुए । 20 साल बाद कोई पढ़ता है क्या। 

वैसे तो हमारे यहां अब 12 महीनों ही क्रिकेट होता रहता है या कोई अन्य खेल पर शिवेन्द्र के लिए क्रिकेट से इतर शास्त्रीय संगीत की संस्था रागगिरी से जुड़े होने के साथ इसी नाम की किताब भी लिखी है ।

इसके अलावा संगीत पर चार किताब प्रकाशित हो चुकी है। इन किताबों का अनुवाद कन्नड़,असमिया,बांग्ला, राजस्थानी, पंजाबी, कोंकणी, उर्दू,नेपाली और अंग्रेजी में भाषाओं में हुआ है। मेरे लिए क्रिकेट लेखक के विषय की ये जानकारी अद्भुत है। 

रुकिए अभी और भी है अभी टीवी 9 में डिजिटल स्पोर्टस क्षेत्र पर नजर रखते है और खेल पर ही पीएचडी भी कर रहे है। इतनी विविधता के चलते आने वाले समय में अन्य किताबें लगातार आती रहेंगी।

किताब का शीर्षक बहुत मज़ेदार है ओपनर्स - गेंद को छोड़ने व तोड़ने वाले सलामी बल्लेबाज़ों की कहानी। 

मुझे तो इस शीर्षक पर दो नाम याद आते है सुनील गावस्कर और वीरेन्द्र सहवाग 

जिस किताब की प्रस्तावना सचिन तेंदुलकर ने लिखी हो तो कुछ तो बात होगी। वैसे सचिन ने सटीक लिखा मेरे लिए ओपनिंग का कोई एक फिक्स फार्मूला नहीं है।

किताबें लिखने का आइडिया ऐसे ही आता है जैसे शिवेन्द्र को विराट की ओपनिंग बल्लेबाजी देखकर आया। उनके अनुसार जीत की मंज़िल पर पहुंचने के लिए ओपनर्स ही पहली सीढ़ी होते है ।इस किताब में मैंने मंजिल तक पहुंचने वाली सीढ़ी के पहले किरदार को खंगालने का प्रयास किया है। 

पहले आधे घंटे धैर्य - गावस्कर, 

बल्लेबाजी की शुरुआत करना सबसे बड़ी चुनौती है -  बायकॉट 

ऑस्ट्रेलिया के चार्ल्स बैनरमैन पहले सलामी बल्लेबाज थे पहला रन पहला अर्धशतक पहला शतक पहला डेढ़ा शतक और पहले रिटायर्ड हर्ट बल्लेबाज। पहले टेस्ट को जीत भी ऑस्ट्रेलिया । पहले मैच का दिन था 15 मार्च 1877 ।

सबकुछ तो लिखना संभव नहीं है उसके लिए तो किताब ही पढ़नी पड़ेगी। लेकिन है बहुत शानदार, तीन ग्रेस भाइयों का इंग्लैंड के लिए एक साथ खेलना। क्रिकेट को जानने वाले जानते है डब्ल्यूजी ग्रेस का नाम इंग्लैंड के पहले शतकवीर ओपनर्स 4.11 घंटे में 152 रन ये रिकार्ड टूटा नहीं है अभी । प्रथम श्रेणी में ग्रेस के आंकड़े है 870 मैच 54000 रन 124 शतक।

टेस्ट खेलने वाली तीसरी टीम कौन सी थी, ओलम्पिक में कब हुआ टेस्ट क्रिकेट, फ्रांस भी ओलम्पिक में क्रिकेट टेस्ट खेलनी वाली टीम थी, द मास्टर किस सलामी बल्लेबाज को बुलाया जाता था, कौन सा बल्लेबाज शतक बनाकर आउट हो जाता था जिससे दूसरे बल्लेबाज बेटिंग कर पाए, कौन सी चौथी टेस्ट टीम थी, पहला तिहरा शतक, भारत के खिलाफ ऐसा सलामी बल्लेबाज जो विश्व युद्व में फ्लाइट लेफ्टिनेंट था, भारत का पहला चर्चित ओपनर, ऐसा ओपनर जो ग्लव्स नहीं पहनता था, इन सब प्रश्नों को जानने के लिए किताब को अमेजन से मंगा लीजिए।

ओपनर लेन हटन, एसजी बार्न्स, वीनू मांकड़ परेशान न हो वीनू ने पांच शतक बतौर ओपनर ही बनाये थे, ब्रैडमैन की टीम का ओपनर, पंकज राय, पाकिस्तान के मोहम्मद भाई, कौन खिलाड़ी था जिसने 16 घंटे बल्लेबाजी की 337 रन बनाएं, चार दशक तक ऑस्ट्रेलियन क्रिकेट में कौन जमा रहा था, वेस्टइंडीज के सलामी बल्लेबाज़ों की कहानियां, न्यूज़ीलैंड का ऐसा बल्लेबाज जिसने तीन ही शतक लगाए वो भी भारत के खिलाफ, कहानी ग्लेन टर्नर की जैसे सारे जवाब इसी किताब का हिस्सा है। 

डेनिस एमिस का नाम तो सुना होगा वेस्टइंडीज की टीम के सामने अड़े रहे,बिल लारी की कहानी, 20 साल की उम्र में भारत के बुधी कुंदरन 1960 से 1967 तक विकेट कीपर सलामी बल्लेबाज थे, टेस्ट में 430 गेंदों में 302 रन बनाने वाले टेस्ट ओपनर थे वेस्टइंडीज केलारेंस रोव,

ग्रीनिज, मोहसिन खान,सादिक मोहम्मद, माजिद खान, ग्लेन टर्नर बतौर ओपनर क्या सोचते थे ?

आईए वनडे की बात करते है पहला वनडे पांच जनवरी 1971 को हुआ था इंग्लैंड ऑस्ट्रेलिया के बीच 40 ओवर मैच 46000 दर्शक, इंग्लैंड के 190 रन आस्ट्रेलिया के 191 रन। होल्ड ऑन था तो टेस्ट ही लेकिन बरसात तीन दिन होती रही तो 40 - 40 का मैच खेला गया जिसने वनडे की नींव पड़ी। 

सिर्फ बायकॉट ने 36 वनडे खेले अपने समय के खिलाड़ियों में,

1975 पहला वनडे विश्वकप का एलान लेकिन क्या आपको पता है 1973 में वूमेंस वर्ल्डकप हो चुका था। 

गावस्कर की 174 गेंद 36 रन की पारी तो सबको पता है सात जून 1975 टीम इंग्लैंड लॉर्ड्स का मैदान इंग्लैंड ने बनाए 60 ओवर में 334 रन इंग्लैंड जीती 202 रन से, पहला वर्ल्डकप वेस्टइंडीज ने जीता था सबको पता है। इस वनडे का एक रिकार्ड पचास साल बाद भी बरकरार है। 

किस्से 1979 विश्वकप के, वनडे खिलाड़ियों का आगाज़ उनके किस्से, ग्राहम गूच 4290 वनडे रन आठ शतक बेहतरीन सलामी बल्लेबाज होते थे। 

1983 विश्वकप के विषय में तो सारी कहानियां पता ही है उस समय के किस्से कहानियों को पढ़िए आनन्द आयेगा। सुरिंदर खन्ना ने भी कुछ बेहतरीन पारी खेली है इस किताब से ही पता चला। श्रीकांत की चर्चा होना स्वाभाविक है।

1983 विश्वकप के बाद एक और अलग तरह का विश्वकप टाइप था बेसन हेजेस कप उसके विषय में अवश्य पढ़िए। गावस्कर का बल्ला हाथ से छूटना और दिल्ली टेस्ट मैच में वनडे जैसी पारी 128 गेंद 121 रन।

किताब में ऐसे बहुत से मैच और ओपनर्स का जिक्र है जिनकी याद हमें नहीं है। 1987 के विश्वकप जो भारत में हुआ था को पढ़ना बहुत सी नई जानकारी हमें मिलती है। गावस्कर ने इस विश्वकप में 300 रन बनाएं थे जिसकी जानकारी बहुत कम लोगों को होगी।एक मैच में तो गावस्कर ने एक ओवर में 21 रन भी बनाएं थे।

इससे आगे वनडे के विषय में शिवेन्द्र ने जानकारी जुटाने में खासी मशक्कत की है। अलग अलग देश की ताक़त कमज़ोरी को अच्छे से नापा तोला गया है।  श्रीलंका के विषय में खूब जानकारी है मिसाल के तौर पर भारत ने टेस्ट में बनाए 537 रन पारी घोषित श्रीलंका ने बनाए 952 रन 6 विकेट पर। नहीं पता था ना मुझे तो याद नहीं था।

17 फरवरी 2005 से टी 20 की शुरुआत हुई । यह मैच आस्ट्रेलिया न्यूजीलैंड के बीच। ऑस्ट्रेलिया ने बनाए 214 रन, पॉन्टिंग ने 55 गेंद पर 98 रन बनाए। न्यूजीलैंड ने बनाए 170 रन।

2007 के टी 20  विश्व कप की धोनी की टीम की याद है आप सबको। टी 20 ने क्रिकेट के प्रति अद्भुत जुनून भरा। रही सही कसर ललित मोदी के आई पी एल ने पूरी कर दी।। मैच का हो हल्ला विदेशी खिलाड़ियों के आने से खूब बढ़ा। खुबसूरत चीयर्स लीडर मैच के बाद देर रात की पार्टियां। मैच से ज्यादा रात की पार्टियों के किस्से कहानियों की भरमार रही। 

18 अप्रेल 2008 को आई पी एल का पहना मैच कोलकाता बंगलौर के  बीच हुआ कोलकाता के ओपनर ब्रैंडन मैककुलम ने 73 गेंदों में 158 रन बना दिए । 223 रन के सामने बंगलौर की पूरी टीम 82 रन पर सिमट गई। 

बैजबाल शब्द खूब सुना होगा इंग्लैंड की टीम के साथ । वजह बताएं ब्रैंडन का निकनेम बैज है जब वो इंग्लैंड के कोच बने तो बैजबाल यानि उनकी तरह का खेल इंग्लैंड ने खेलना शुरू किया। 2024 का आईपीएल तो याद ही होगा आप सब को।

किताब में अभी तक के मैचों की खूब जानकारी है। 

सौरभ गांगुली सहवाग के किस्से तो सबको पता ही है नहीं पता तो खरीदिए ये किताब। सचिन मैथ्यू हेडन एडम गिलक्रिस्ट गौतम गम्भीर पाकिस्तान के साथ दौरों का सिलसिला पाकिस्तान के किस्से, सहवाग का मुल्तान के सुल्तान बनना, ये सब विस्तार से किताब में है। 

2000 से 2010 तक के बाद 2010 से अभी तक के ओपनिंग बल्लेबाजी के रिकॉर्ड्स कहानियां खूब है। किताब की खासियत ही है कि रिकॉर्ड्स की बात किस्सों के कारण बोर नही करती। 

2011 के विश्व कप की यात्रा ताज़ा हो जाती है पढ़कर, गब्बर का आना, रोहित का आग़ाज़ 2015 के विश्वकप के किस्से कहानियां चैम्पियंस ट्राफी चल रही है उसके किस्से रिकार्ड।

2019 में विश्व टेस्ट चैम्पियनशिप शुरू हुई। उसके किस्से रिकॉर्ड्स। 197 पेज की किताब के 188 पेज पर था। सोच रहा था किताब खत्म होने को आई चेतन चौहान की कहीं कोई चर्चा नहीं है सुकून मिला जब आखिरी 9 पेज में एक और एक ग्यारह वाली जोड़ियों में गावस्कर चौहान की जोड़ी दिखी। 

1970 - 1980 दशक में गावस्कर चेतन की जोड़ी की धूम रही। 1973 की इंग्लैंड के साथ घरेलू सीरीज़ में दोनों की शुरुआत हुई थी। लेकिन टूट भी गई। 1977 में चेतन दोबारा आए। अगले चार वर्षों में दोनों ओपनर्स ने 59 परियों में 3010 रन बनाए। 

बाद में एक और भारतीय ओपनिंग जोड़ी को नाम मिला जय वीरू का, नाम वीरू तो आप जानते है जय कौन था अरे भाई सब यहीं बता दूंगा तो किताब कौन खरीदेगा। किताब खत्म हुई। 

विश्व के ओपनर्स को एक साथ पिरोना उनके रिकॉर्ड्स तलाशना उन्हें शब्दों का ज़ामा पहनाना आसान काम नहीं है। शिवेन्द्र ने ये काम बख़ूबी किया है।  

किताब का मूल्य रुपए 299 है। क्रिकेट खिलाड़ियों, शौकीन और विभिन्न पुस्तकालयों में यह किताब होना चाहिए। रिकॉर्ड्स की जांच पड़ताल के लिए जरूरी है । 

शुभकामनाओं सहित 

हरीश शर्मा 











Monday, January 27, 2025

Bhikkhu Sanghasena visited Rashtrapati Bhavan

At the gracious invitation of the Hon’ble President of India, Smt. Draupadi Murmu, Bhikkhu Sanghasena visited Rashtrapati Bhavan today to attend the prestigious *”At Home Reception.”* During the event, he had the privilege of interacting with the Hon’ble President, Hon’ble Prime Minister, the Hon’ble President of Indonesia H.E. Mr. Prabowo Subianto, esteemed ministers including the External Affairs Minister, ambassadors of various countries, and other distinguished guests.

In his interaction with the Hon’ble President of India, she warmly recognized Bhikkhu Sanghasena and fondly recalled the earlier invitation extended to her by him. She expressed regret for not being able to visit MIMC yet but assured him that it remains in her plans for the future.
While interacting with the Hon’ble Prime Minister, Bhikkhu Sanghasena graciously reminded him of his earlier invitation to visit the MIMC Ladakh.

During a meaningful conversation with Dr. S. Jaishankar, the Hon’ble Minister for External Affairs, Bhikkhu Sanghasena shared his vision of organizing an International Conference in the upcoming summer and extended a personal invitation to him.

The Hon’ble President of Indonesia, H.E. Mr. Prabowo Subianto, was delighted when Bhikkhu Sanghasena shared his experiences of visiting Indonesia on multiple occasions.

Bhikkhu Sanghasena also extended a heartfelt invitation to all the dignitaries he met, encouraging them to visit Ladakh to experience its unparalleled landscapes, unique cultural beauty, and the rejuvenating practices of yoga and meditation.