बात 1992/3 की है मैं 27 साल का हो गया था घर वाले चिंतित थे शादी को लेकर। मैं फ्रीलांस फोटोग्राफर,पत्रकार यानी कोई नियमित कमाई नही थी। फिर भी मेरे लिये लड़कियों की कोई कमी नही थी। 8-10 लड़कियाँ घर वाले दिखा चुके
थे।
लेकिन मेरे दिल की घंटी नही बजी। मुझे लगता था जैसे फिल्मों में दिखाते
है लड़के ने लड़की देखी तो देखता ही रह गया। ऐसी ही किसी लड़की का इंतज़ार था मुझे। एक दिन पिताजी एक छोटा सा फ़ोटो लाये पोस्टकार्ड साइज़ से भी आधा,एक खूबसूरत लड़की किसी बच्चे को गोद में लिये हुए, उस फ़ोटो को देखते ही मेरे दिल की घंटी बज गई।
पिताजी को बोला इस लड़की के लिये हाँ कर दीजिये। पिताजी ने पूछा बिना मिले बिना देखे हाँ, जब कि इतनी लड़कियाँ
देखकर न। मैंने कहाँ हाँ कर दीजिये देर हो उससे पहले। कोई और पसंद कर ले उसको। अब मैं शादी करूँगा तो इसी
लड़की। मैंने पिताजी को emotional ब्लैकमेल किया।
पिताजी तो चले गये लेकिन बरेली की उस कन्या की फ़ोटो को देखकर सबसे पहला ख्याल आया भाई यह खूबसूरत
लड़की तुझे क्यों पसंद करेगी । मेरा एक ही ख़्वाब था एक बार शादी करनी है लड़की extraordinary होनी चाहिये ।
लड़की फ़ोटो में extraordinary ही थी। मैंने ईश्वर से प्रार्थना की हे प्रभु इस लड़की को मेरी झोली में दे दीजिये।
मुझे भी पता था नसीब अच्छा होगा तभी बात बनेगी वरना एक साधारण शक्ल सूरत और बिना नौकरी या अनिश्चित
कमाई वाले करने वाले लड़के को इतनी सुन्दर लड़की कौन देगा।वही हुआ जिसका डर था लड़की वालों का कोई
जवाब नही आया। स्वाभाविक ही था पढ़ी लिखी और खूबसूरत लड़की के लिये अच्छे और कमाऊ लड़को की क्या
कमी। फिर माँ बाप की भी पहली ख़्वाहिश होती है ऐसी लड़की के लिये डॉक्टर, इंजीनियर सी ए, या अच्छा
बिजिनेसमेन मिले।
मेरा भी संघर्ष का समय था 1992 के उत्तरार्ध में पिथौरागढ़ से जेब में 700 रुपये के भरोसे दिल्ली जीतने आया था।
एक ही काम आता था लिखना। दिनभर लिखे लेख लेकर विभिन्न अखबारों और पत्रिकाओं के दफ्तर के चक्कर लगाता
था।रात को आकार सुबह 3-4 बजे तक नये लेख लिखता 5 कार्बन कॉपी करता जिससे एक जगह न छपे तो दूसरे
अखबार में दे दे या एक लेख एक प्रदेश में दूसरी कॉपी दूसरे प्रदेश में छप जाये यदि संपादक को पसंद आ जाये।
इस आपाधापी भागादौड़ी में शादी का ख्याल पीछे चला गया। मुझे खुद को साबित करना था वो भी सबसे कठिन
शहर दिल्लीमें। जब मैं पिथौरागढ़ से दिल्ली आने की तैयारी कर रहा था मुझे कई लोगो ने समझाया, कुछ ने व्यंग्य किया।
भाई अच्छे अच्छेगये बड़े जोश में लेकिन सारे वापस आ गये। मैं खामोश ही रहा और आ गया दिल्ली।
शुरुआती झटकों के बाद पैर जमने लगे। लेख छपने लगे पैसे मिलने लगे लेकिन इतने ही कि दो जून की रोटी मिलने
लगी। धीरे धीरे अम्मा पिताजी भाई भी बरेली से आ गये। जी हाँ हम भी बरेली के ही है जन्म और परवरिश वही हुई।
छोटी बहन पहले से ही साथ थी। होली फैमिली में नौकरी करती थी उसका बड़ा सहारा था।
संघर्ष और परिवार के साथ रहते करीब डेढ़ दो साल कब निकल गये पता ही नही चला। थोड़ा स्थायित्व आया तो सबको
लगा अब तो शादी हो ही जानी चाहिये। बात उठी तो मैंने कहा शादी तो बरेली वाली लड़की से ही करनी है।सब बोले दो
साल हो गये अब तक तेरे लिये बैठी होगी क्या। मैंने कहा मैं तो बैठा हूँ। एक बार पता कीजिये। दिल धड़का कही उसकी
शादी हो गई होगी तब क्या। तब क्या सोचा ही नही। कुछ दिन बाद पिताजी के स्रोत से पता चला लड़की की शादी नही
हुई है।
देर रात आया तो यह खुशख़बरी मुझे दी गई। बड़ा सुकून मिला जैसे वो मेरी ही हो गई।पिताजी ने फिर से अपने सोर्स को
बोला और सोर्स ने लड़की के पापा को। लेकिन मैं तो इन सालों में भी स्वतंत्र पत्रकार ही था। इस बीच एक अच्छी बात यह
हुई कि मुझे जैन टीवी में पार्ट टाइम जॉब मिल गई इस शर्त के साथ कि मैं अपनी फ्रीलांसिंग जारी रख सकता हूँ।
एक दिन मुझे बताया गया कि लड़की के पापा मुझे देखने मिलने जैन टीवी आयेंगे। तय समय पर वो आये थोड़ी देर बात
हुई। मैंने उन्हें बताया कि मेरा काम जैन साहब और चैनल की पब्लिसिटी करना है विभिन्नअखबारों और पत्रिकाओं
में। पी आर नई चीज थी उनके लिये, उनके लिए क्या मेरे घर वाले भी नही समझा पाते थे कि मैं वास्तव में करता क्या हूँ।
उसी तरह सब समझने के बाद लड़की के पापा ने पूछा आपने जो बताया वो तो ठीक है लेकिन आप जॉब क्या करते हो।
मैंने सोचा जब इन्हें ही नही समझा पा रहा हूँ तो यह अपनी बेटी को कैसे समझा पायेंगे। मैंने जैन साहब के छपे इंटरव्यू
निकाले उन्हें दिखा कर बताया मैंने निकलवाये है यह सब। वो बोले मैं समझ गया अब मुझे चलना चाहिए बस भी पकड़नी है। मैं समझ तो गया था इनको कुछ समझ नही आया मैं करता क्या हूँ। लेकिन उम्मीद पर दुनियाँ कायम है। मैं भी था।
आजकल कहते है ना फिंगर क्रॉस मैंने भी कर ली। रोज इन्तजार करता कोई जवाब नही। करीब सात दिन बाद फोन आया पापा जी का हम तैयार है। चुपके से पर्स में रखा फ़ोटो निकाला चूमकर कहा जीत ही लिया न आखिरकार।कुछ दिन बाद बताया गया लड़की आ रही है नोएडा, जी हाँ हम नोएडा रहते थे तब।पिताजी ने किन्ही परिचित
के यहाँ दिखाने मिलाने का इंतज़ाम कर दिया। दिल मे एक खटका तो था ही। लड़की ने देखने के बाद मना कर
दिया तो। तो क्या कोई जवाब ही नही था मेरे पास। मेरी तो हाँ ही थी।
तय समय से देर से पहुँचा था मैं। पहली बार देख कर मैं कुछ बोल ही नही पाया। थोड़ी देर बाद हमनें बात की। मैंने अपनी
स्थिति ज़िम्मेदारी सब बता दी यह भी जता दिया कि आर्थिक स्थिति बहुत अच्छी नही है। लेकिन भविष्य ठीक लगता
है। मेरी साफगोई शायद उस समय उन्हें सही लगी।
मैंने अपनी छोटी बहन की तरफ देखकर न में गर्दन हिलायी उसने आंखे तरेरी, मुझे बताया गया बरेली जाकर अन्य घर के
सदस्यों से सलाह लेकर जो उचित होगा बतायेंगे, यानि अभी भी लोचा। कुछ दिन बेकरारी इन्तजारी के बाद जवाब आया रिश्ता पक्का। मिठाई आयी मिल गई बधाई। नया जोश आ गया जीवन में जिस लड़की के लिए दो साल इंतजार किया वही लाइफ में आ रही है । एक तरह का साइलेंट लव वो भी एक तरफा। लड़की को पता ही नही कि उसका होने वाला पति दो साल से उसका इंतजार कर रहा है।
सब ठीक ही था शादी की तारीख निश्चित हो गई 14 मई 1995 लेकिन तभी शादी के लिए दो परिवारों के बीच होने वाली
बातचीत में कोई गड़बड़ हुई कन्या पक्ष ने अपने तेवर दिखाये। रात आने के बाद मुझे बताया गया कुछ गड़बड़ है। मैंने
अपने जीजाजी जो इत्तेफ़ाक से आये हुए थे को बोला आप बात कर उन्हें बोले जैसे उनको सहूलियत हो वैसे वो निश्चित करे।
बात सँभल गई।
मीनाक्षी के जीवन में आने के बाद इतनी तेजी से बदलाव आए कि उनको तराशना संभालना आसान नही था। मीनाक्षी यानि
मेरी मिंटी के आने के तीन चार महीने बाद ही जैन टीवी से नौकरी बदली हुई, वहाँ 4 हज़ार रुपये मिलते थे। नयी नौकरी इन
चैनल में लगी 15 हज़ार रुपये में।
फ्रीलांसिंग चल ही रही थी राष्ट्रीय सहारा का सबसे बड़ा सहारा था। इन चैनल में पी आर का ही काम था। मिंटी के आने
से एकलाभ यह हुआ कि लेख लिखने की संख्या बढ़ गई मैं अकेला यदि सप्ताह में 10 लेख लिख पाता था तो अब उनके
लिखने से यह संख्या 15/18 हो गई। अख़बार अधिक हो गये। स्थिति यह हो गई कि हम जो भी लेख भेजते 90% छपने
लगे।यहाँ तक कि हिन्दुस्तान टाइम्स और टाइम्स ऑफ इंडिया भी कुछ आर्टिकल प्रकाशित होने हुए।
मैंने side by side स्वतंत्र पीआर भी शुरू कर दिया था। मेरी पहली cliente कोई फ़िल्म क्षेत्र से नही थी वो थी सौंदर्य
विशेषज्ञ भारती तनेजा हम दोनों ने अपना व्यावसायिक जीवन एक साथ ही शुरू किया था। शीघ्र ही मुझे लगने लगा
अब अपना काम शुरू करना चाहिये।
हिन्दुजा इन चैनल मे 8-9 महीने हुए होंगे सब कुछ बहुत अच्छा चल रहा था। 15 हज़ार की नौकरी छोड़ने का लालच आसान
नही था एक नियमित आमदनी पता थी यह तो आनी ही है। लेकिन कहते है जो होता है अच्छे के लिए होता है वैसा ही हुआ।
इन चैनल की मीडिया हेड मुम्बई से आई थी। मुझे उनके कुछ इंटरव्यू कराने थे।
अब जैसा होता है उस समय भी आज भी छोटे बड़े सभी को सिर्फ दो ही अख़बार चाहिये होते थे है और रहेंगे। हिन्दुस्तान
टाइम्स और टाइम्स ऑफ इंडिया। हिन्दुस्तान टाइम्स में एक नगर संपादक थे सिंह साहब वो मुख्य अखबार में अपना एक
कॉलम भी लिखते थे दूसरे पेज पर। मेरे उनसे बहुत अच्छे सम्बन्ध थे।इन चैनल हेड के इंटरव्यू के लिये मैंने उन्हें तैयार
किया।कनॉट प्लेस के एक रेस्टोरेंट में लंच मीटिंग थी। लंच के दौरान दोनों बात करते रहे और मैं चुपचाप लंच करता रहा।
मैडम ने कुछ नही खाया। इंटरव्यू अच्छा हुआ अगले दिन छप भी गया। मैंने सिंह साहब को थैंक्स का फोन किया।
ऑफिस आया तो मैडम ने केबिन में बुलाया बोली। आपका आज आखिरी दिन है आप यह बताये कि आपको terminate
करे या आप इस्तीफ़ा देंगे। मुझे झटका लगा, HT में क्या कुछ गलत छप गया। खैर मैंने चार लाइन का इस्तीफ़ा दिया। मैंने
वजह पूछी मैडम बोली कल आप संपादक और मेरे सामने कैसे चपड़ चपड़ कर के खा रहे थे। कोई प्रोटोकॉल होता है कि
नही।
सामान समेटते समय मैं रुआँसा सा था यह मेरी एक साथी से देखा नही गया उसने मुझे बताया आपकी शिकायत की गई है
आप समय से नही आते। एक बार ऑफिस से जाते है तो वापस नही आते। मुझे लगा सिर्फ यह वजह नही हो सकती क्योंकि
मेरा तो काम ही मीडिया से मिलना था। मुझे याद आया मैडम नोएडा में अपने भाई की फ़ैक्टरी में ले गई थी पिछली बार
कुछ पीआर के लिए लेकिन वो मैं नही करा पाया था।
मुझे चिन्ता थी घर वालो से, मिंटी से क्या कहूँगा। ऑफिस की राजनीति इन्हें समझ नही आयेगी। सच बता कर मिंटी को परेशानी में क्यों डालना । अपना काम शुरू करना है यह तो उन्हें पता ही था, घर आकर यही बोला मैं पूर्ण रूप से अपना काम शुरू कर रहा हूँ। मिंटी ने कहा मुझे तुम पर पूरा भरोसा है तुम कर लोगे। जैसा भी होगा निभा लेंगे।
मैंने सोचा था जब सब ठीक हो जायेगा तो किसी दिन मिंटी को बता दूँगा। लेकिन वो दिन आज 25 साल बाद आया। क्योंकि
अपना काम शुरू किये हुए कुछ समय ही हुआ था कि एक रात मैडम ने बताया आप बाप बनने वाले है। मैं, सब बड़े खुश
हुए। लेकिन खुशी अधिक दिन नही टिक पाई। गर्भपात हो गया।
मीनाक्षी बहुत मायूस हो गई, होना ही था लेकिन जल्दी ही उसे एहसास हुआ मायूसी से नही काम करने से सब ठीक होगा।
और यह वो समय था जब मिंटी ने अपने नाम से लेख लिखना शुरू किये। मेरा पीआर में रुझान बढ़ गया था लिखना कम
हो गया था। लिखने की ज़िम्मेदारी पूर्ण रूप से मीनाक्षी शर्मा के कंधों पर आ गई थी। मुझे कई बार आश्चर्य होता था घर
का काम करने के बाद समय कब मिलता है इन्हें लिखने का।
जनवरी 1996 में मैडम ने फिर खुशख़बरी दी बाप बनने की तैयारी कर लो, इस बार हम अधिक सतर्क थे शुरू से ही होली
फैमिली हॉस्पिटल की निगरानी में जच्चा बच्चा की देखरेख शुरू हुई छोटी बहन वहाँ काम करती थी वो तो बाहर चली गई
थी लेकिन उसके मित्र और हमारी परिचित मार्था दी के कारण कुछसहूलियत तो हो जाती थी।
नोएडा से होली फैमिली जाना वो भी मोटरसाइकिल से हमेशा रिस्की तो था ही लेकिन यही सुविधा थी उस समय हमारे पास।
माँ और बच्चे की रिपोर्ट ठीक ही थी, थोड़े बहुत तनाव तो रहते ही है। अभी बच्चे को आने में दो महीने बाकी थे जब एक
दिन मोटा पेट लिए मैडम ने कमरे में बुलाकर एक माँग रख दी। बोली वायदा करो जो कह रही हूँ मानोगे, ऐसा कुछ भी
नही है जो बहुत कठिन माँग हो।
मैंने कहा मेरे पास ऐसा कुछ है तो नही देने को लेकिन मांगो कन्या जो वरदान माँगोगी पूर्ण किया जायेगा। वो बोली पेट की
तरफ इशाराकरके बेटी हो या बेटा बस एक ही मिलेगा दूसरा नही, कभी माँगने की सोचना भी मत।एक बार को तो झटका
सा लगा भला यह क्या माँग हुई। लेकिन वचन दे दिया था तो दे दिया। बाद में दोनो परिवार के बुजुर्गों ने काफी दबाब बनाया
लेकिन हम दोनों अपनी बात पर अड़िग रहे।
समय से पहले ही हस्पताल भागना पड़ा। भर्ती हो गई बताया गया अब ठीक है हस्पताल में है तो देख रेख अच्छे से होगी
हम दोनों अन्य घर वाले तनाव में तो थे। लेकिन ईश्वर पर भरोसा था। सारे दिन मैं हस्पताल में ही होता था। 19 नवम्बर
1996 की रात 9 बजे घर पहुंच कर खाना खाने बैठा ही था कि हस्पताल से फोन आ गया जल्दी आये स्थिति गंभीर है।
खाना छोड़कर हस्पताल पहुँचा अम्मा के साथ तो मीनाक्षी को लेबर रूम में ले ही जा रहे थे हमारी चिन्ता थी अभी तो करीब
ही महीने हुए है। मीनाक्षी शान्त थी निश्चिंत, मेरा हाथ पकड़ कर बोली फिक्र नॉट सब अच्छा होगा।मुझसे कुछ पेपर पर
हस्ताक्षर कराये गये कि जच्चा बच्चा को कुछ हो जाये तो हस्पताल की ज़िम्मेदारी नही होगी। उस समय
कुछ सोचने समझने का समय ही कहाँ था। जैसे जैसे कहते गये मैं करता गया।
20 नवम्बर 1996 सुबह 3.14 पर एक नन्ही परी हमारे परिवार का हिस्सा बनी। करीब चार बजे उसे मुझे और अम्मा को
दिखाया गया। खूबसूरत तो थी गनीमत थी रंग भी माँ जैसा ही था। वक्त से पहले आने की वजह से बेहद कमजोर थी। उसे
माँ से अलग कर दिया गया था। मुझे जैसे याद है जन्म देने के बाद मीनाक्षी ने अपनी उस बच्ची को नही देखा था।
फिर जैसा अक्सर होता है कमजोर बच्चों के साथ, हमारी बच्ची को पीलिया हो गया। बच्ची ऑपरेशन से हुई थी तो माँ भी
कमजोर ही थी फिर बच्ची को न देख पाने और गोद में न लेने का गम मैं समझ सकता था लेकिन मिंटी मजबूत बनी रही
उसे चिन्ता थी बस बच्ची ठीक हो जाये। मिंटी चलने लायक हुई तो हम पास में ही इंक्यूबिटर में लेटी बेटी को शीशे की
खिड़की से दूर से देखते, नर्स बताती उस वाले इंक्यूबिटर में है आपकी बेटी। मार्था दी इसी हस्पताल में थी तो वो कभी
पास से देखकर आकर हमें बताती बहुत सुन्दर है मनु,आप पर गई है, सब ठीक होगा चिन्ता मत करो ।
मीनाक्षी को हस्पताल से छुट्टी मिल गई लेकिन बेटी को नही। गुड्डी, हम सुधा को गुड्डी ही बुलाते है प्यार से ने बेटी का नाम
रिनी रख दिया हम सही समय पर रोज हस्पताल जाते, दूर से बेटी के हिलते हाथों को देख कर खुश होते, सोती होती तो
मायूस होते।इस तरह 15 / 16 दिन बीत गए या अधिक सही से याद नही फिर एक दिन हमें बताया गया शायद आज रिनी
को छुट्टी मिल जायेगी । उस दिन छुट्टी मिल गई। रिनी अपनी माँ की गोद मे थी पहली बार जन्म देने के इतने दिन बाद,
कितनी ही देर रोई होगी मीनाक्षी मुझे पता नही। क्योंकि मैं अपने को संभाल कर बिल भरने चला गया था । बिल भरा तो
पता चला महँगी बेटी आई है हमारे यहाँ।
जो भी रस्मोरिवाज किये जाते है वो सब अच्छे से किये गये। पूजा पाठ किया गया और उसकी माँ ने रिनी का नाम रखा ईहा।
मुझे भी पूछना पड़ा ईहा यानि तो पता चला पृथ्वी। इस तरह घर परिवार के लोग रिनी बुलाते है और बाहर यानि ऑफिशियल
नाम ईहा शर्मा।
कुछ ही समय नोएडा रहने के बाद हम लोग गोविन्द पुरम गाज़ियाबाद शिफ्ट हो गये। साऊदी अरब में कार्यरत बड़े जीजा
जी ने कोठी बनाई थी हम सब वहाँ आ गये। रिनी का आना नये मकान में जाना उससे ही जन्म हुआ HS Communication
का 20 नवम्बर 1996 को ही नामकरण किया था हमने। रिनी के बढ़ने के साथ ही HSC ने काम की वो रफ्तार पकड़ी
जिसे देख हमारे सहित अन्य जानकर भी आश्चर्य में थे। कहते है जब आपका समय अच्छा हो तो सारी कायनात जुट जाती है
आपकी बेहतरी के लिए। ऐसा लगता था जो भी जुड़ रहा है हमारी सफलता के लिये ही जुड़ रहा है।
पीआर जैसे जैसे आगे बढ़ा उसका सबसे अधिक नुकसान मीनाक्षी को ही हुआ। नवभारतटाइम्स राजस्थान पत्रिका और भी
कई अखबारों में मीनाक्षी के लेख हर तीसरे चौथे दिन छपते थे। कई महीने प्रकाशित होते रहे।अभी lockdown में पुरानी
कटिंग्स को निकाल कर डिजिटाइज कर रहा था तो पता चला मुझसे तीन गुना लेख तो मीनाक्षी के छपे थे। यदि गिनती करूँ
तो 2500/3000 होंगे यकीन नही होता न मुझे भी नही था।
जैसे जैसे संपादकों को पता चलना शुरू हुआ मीनाक्षी शर्मा हरीश शर्मा PRO की wife है उनके नाम से लेख छापना बन्द
कर दिये। मजे की बात यह कि उन्ही के लिखे लेख अन्य नामो से छपना जारी रहे।
25 वर्षों को पलट कर देखता हूँ तो लगता है मीनाक्षी नही होती तो व्यक्तिगत और व्यावसायिक तौर पर क्या सफल होते
हम। मुझमें कई ख़ामियाँ है मुझे पता है। मिथुन राशि और लग्न में राहु होने से अजीब सपनीला संसार बुनते है हम लोग।
लेकिन धरातल पर वास्तविक रूप मीनाक्षी ने ही दिया।
मुझे कई बार लगता है split personality हूँ मैं। घर वाले कहते है मैं short temper हूँ बाहर वाले कहते है आपके जैसा
cool इन्सान नही देखा। मैं हमेशा से कम बोलता हूँ यह मुझे पता है बाहर तो कामके सिलसिले में थोड़ा बहुत बोलना
पड़ता है लेकिन घर में तो बहुत ही कम हो जाता है बोलना।
घर वालो को तो बचपन से आदत थी लेकिन दूसरे परिवार से आई अनजान परिवार में लड़की का सबसे बड़ा सहारा पति
ही होता है और वो भी बोले ना तो अजीब स्थिति हो जाती थी। शुरुआती दिक्कतों अड़चनों के बाद मिंटी को समझ आ गया
इसका कुछ नही हो सकता। और उन्होंने समझौता कर लिया।
फिर जब सफलता के सबसे ऊपरी पायदान पर था दिल्ली में धुन सवार हुई फिर से struggle करना है। दिल्ली छोड़कर
मुंबई जाना है। बहुत हुआ लिखना लिखाना और पीआर अब फिल्में लिखना है फ़िल्म निर्देशक बनना है। सबने समझाया
राजा से रंक बनना होगा मुम्बई जाना। लेकिन मीनाक्षी ने कहा मुझे तुम पर पूरा भरोसा है। मिंटी ने फिर समझौता कर लिया,
शुरुआती संघर्ष के बाद पैर जमे तो 7-8 साल निकल गये पता ही नही चला मुंबई में ।
2015 में फिर से संघर्ष करने का विचार आया तो सब कुछ बन्द कर दिया और किताब लिखने का इरादा किया यानि
पूर्णकालिक लेखक यानि 1992 से जो शुरूआत की थी वापस वही पहुँच गये। मीनाक्षी ने कहा जो मन से कहे वो करो।
किताब लिखना शुरू ही किया था परिस्थिति ऐसी बनी हैदराबाद shift होना पड़ा। जीवन की सबसे बड़ी समस्या से दो
चार होना पड़ा। इस बार हमें समझौता करना पड़ा। लेकिन सुकून यह रहा कि बेहद कठीन परिस्थितियों से निकल आये।
अब आगे क्या, पता नही क्या ख्याल आया 2019 अगस्त में गोआ आ गये। अप्रैल 2020 में मुम्बई शिफ्ट होना था लेकिन
कोरोना ने सारे प्लान बदल दिये। हमारा नया संघर्ष जारी है । इस संघर्ष में 25 साल हम साथ साथ है। आपसी समझ बढ़ी
है। शादी के शुरुआत में कभी मनमुटाव होता था तो 6/7 दिन लगते थे मनाने में, अब मनमुटाव होता ही नही, होता भी है
कभी कभार तो 3/4 मिनट से अधिक नही लगते सब ठीक होने में।
एक बात मैं आज की पीढ़ी को समझाना चाहता हूँ, मैं जानता हूँ समय बदल गया है फिर भी कैरियर बनाने के कारण शादी
न करना या देर से करने से बेहतर है जीवनसाथी समय से लाना। दो लोगो का नसीब जुड़ता है तो अधिकतर अच्छा ही
होता है। थोड़ा वक्त साथ गुजरता है, दो नये लोग को समय लगता है समझने के लिये, लेकिन सामंजस्य होता ही है और
यहीं जीवन है।
मैं बहुत expressive नही हूँ यह मेरी कमी है 25 साल में मैंने शायद ही 25 बार बोला होगा I Love You मिंटी, लेकिन
इस बार सबके सामने बोल रहा हूँ। I love you minti so so सौ much.
मेरी आने वाली किताब "20 years of entertainment PR" के कुछ अंश।
आप लोग सोच रहे होंगे किताब तो 20 वर्ष की है शादी को 25 साल हो गये तो मित्रों 25 वर्ष 14 मई 2020 को हुए है।
लेकिन किताब 2015 तक की है।
हरीश शर्मा
Sir! THIS IS THE BEST LOVE LETTER I HAVE READ. Issey badi baat ek wife k liye kya hogi that her husband respects her so much. And ma'am is a woman of substance. She is strong and so is Rini. God bless you all always. - siddhi
ReplyDeleteSiddhi u r so sweet love u God bless u always.
Deleteवाह भाई एक फिल्म सी चल रही थी आंखो के सामने, भाई आप दोनों को ढेर सारी शुभकामनाएं, सिल्वर जुबली पर नहीं तो कभी गोल्डन जुबली सेलिब्रेट कर सके, यही कामना।
ReplyDeleteराजीव भाई धन्यवाद समय निकाल कर पढ़ने के लिये। पढ़ना भी आसान कहाँ रहा आज के दौर में।
Deleteभैयाजी, क्या खूबसूरती से लिखा है आपने।
ReplyDeleteएक बार पढ़ना शुरू किया तो पढ़ता ही चला गया अंत तक पता ही नहीं लगा कि लेख काफ़ी बड़ा है।
पूरी कहानी एक फ़िल्म की भाँति आँखों के सामने से गुज़र रही थी तो वैसे भी भावनात्मक रूप से काफ़ी जुड़ाव महसूस हुआ। और मेरे को लगता है कि सभी पढ़ने वालों को एक सुखद अनुभव ही हुआ होगा। ����
प्रिय नवीन आज के व्यस्त समय मे कोई post पढ़ना स्वयं में award से कम नही है। फिर यह post तो लम्बी हो गई थी 25 सालों को पिरोना था। पसन्द आई मैं सफल हुआ। साधुवाद।
DeleteThis comment has been removed by the author.
ReplyDeleteबहुत सुंदर भैया आपने बहुत सुंदरता से सभी भावों को पिरोया है जीवन की हर परेशानी को सत्यता बताया है बहुत ही भाव विभोर करने वाली आप की आत्मकथा एक बार तो आंखों को नम कर देती
ReplyDeleteधन्यवाद मित्र आपने बहुत गहराई से पढ़ा है।
DeleteThis comment has been removed by the author.
ReplyDeleteमेरी मिंटी..... वाह ! किसी फिल्म का शीर्षक ही है। एक बार पढना शुरू किया तो पढ़ती ही चली गयी। अपनी कर्मभूमि में सबके जीवन में आते हैं उतार-चढ़ाव। मुझे लगता है कि हर किसी के जीवन पर बन सकती है एक फ़िल्म। विचार कीजियेगा। ईश्वर से निवेदन है कि वह आप लोगों को भरपूर खुशियां और सफलताएं दें।
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