फ़िल्म नगरी यूपी में,
मुख्यमंत्री योगी जी को खुला पत्र
माननीय मुख्यमंत्री जी आप उत्तर प्रदेश में फ़िल्म नगरी बनाने की एक और कोशिश कर रहे है । 1988 में भी तत्कालीन मुख्यमंत्री वीरबहादुर सिंह जी ने भी कोशिश की थी।
वैसे मैं कौन होता हूँ आपको कुछ भी लिखने वाला लेकिन सिर्फ एक आम नागरिक की हैसियत से जो सही लगा वो लिख रहा हूँ। फ़िल्म उद्योग में पिछले 25 वर्षो से हूँ। बरेली में जन्मा पला बड़ा लखनऊ में खेला सो UP के लिये दिल बोलता है।
1992 में जब पिथौरागढ़ से दिल्ली आया तो कुछ समय नोएडा फ़िल्म नगरी में काम किया था वो अनुभव भी है। आपने फ़िल्म नगरी बनाने के लिए पहली ही meeting में कुछ फ़िल्म हस्तियों को बुलाया यह बहुत अच्छी बात है वो सब अपने क्षेत्रों में सफल है लेकिन फ़िल्म नगरी में उनका योगदान क्या होगा मुझे पता नही। फिर आप मुम्बई गये एक बार पुनः मिले उन लोगो से जो स्टार है या फ़िल्म बनाते है UP में भी बनाई है। आगे भी बनाते रहेंगे। लेकिन UP की फ़िल्म नगरी बनाने में इनका क्या योगदान होगा आप बेहतर जानते है ।
यदि आप नोएडा फिल्म नगरी बनाने वाली गलती फिर से तो नही करने जा रहे। पहले की तरह फ़िल्म नगरी बनाने के नाम पर कुछ नामचीन लोगो को रेवड़ियों के भाव में प्लाट बाटे गये। एक नियम के तहत कि इतने सालों में आप स्टूडियो बनायेंगे और स्टूडियो बनाने के बाद इतने सालों बाद ही बेच सकते है 99% लोगो ने नियम का पालन किया और करोड़ो में कुछ लाख में मिली जमीन को बेच दिया। जिस लक्ष्मी स्टुडियो में मैं काम करता था उसे टी सीरीज ने खरीद लिया।
मारवाह स्टूडियो और शायद सुरेन्द्र कपूर स्टूडियो सन्दीप मारवाह चलाते है उन्होंने सही समय पर एक्टिंग स्कूल खोलकर कम से कम सस्ते में मिले प्लाट और फ़िल्म नगरी का कुछ तो मान रख लिया। गनीमत यह रही कि नोयडा फ़िल्म नगरी के फ़िल्म स्टूडियो खरीदने वाले अधिकतर लोग न्यूज़ चैनल चलाते है।
यह सही है कि स्टूडियो मालिको के पास अपने स्टूडियो बेचने के अलावा कोई चारा भी नही था। फिल्मों की टीवी सीरियल की बमुश्किल 1% शूटिंग यहाँ हुई होगी। क्यों कोई सारा ताम झाम लेकर आता और यहाँ शूटिंग करता उसे सिवाय नुकसान के कुछ हांसिल नही होता। दिग्गज LV Prasad की स्टूडियो लेब थी फ़िल्म सिटी में उन्होंने शायद यह सोचकर खोली होगी कि दक्षिण भारत की फिल्मों का काम तो उन्हें वही मिल जाता है नोयडा में खोलकर मुम्बई फ़िल्म नगरी का काम मिलने लगेगा या नियमता भी लेब बनाने की मजबूरी रही हो।
1992/92 जब मैं उस स्टूडियो में जाता था तो एक काम बड़ी शिद्दत से होता था आप कहेंगे दक्षिण की फिल्में आती होगी वहाँ, जी नही प्रसाद स्टूडियो ने दो बहुत खूबसूरत पार्क बनाये थे बस सुबह शाम उनमें पानी दिया जाता था बहुत ही सुन्दर सुन्दर फूल लगे थे वहाँ। तीन चार माली थे एक मैनेजर।
अन्य स्टूडियो में कोई हो न हो मैनेजर जरूर होता था। खैर हम मुद्दे से भटके उससे पहले वापस मुद्दे पर आते है। नोएडा फ़िल्म नगरी के फ्लॉप होने की मुख्य वजह थी infrastructure की। न कैमरे थे ना light थी ना इन्हें चलाने वाले लोग थे यदि थे तो उन्हें फिल्मों का अनुभव नही था कोई हिम्मत जुटाकर फ़िल्म शूटिंग का जोखिम लेता भी था तो सारे technicians मुम्बई से ही साथ लाने पड़ते थे यहाँ तक की खाना बनाने वाले भी क्योंकि उन्हें पता होता था कब कैसे क्या बनाना, देना होता है।
मुख्यमंत्री महोदय आपके पास ज्ञान देने के लिए एक से एक दिग्गज होंगे। किसी ने आपको यह सलाह नही दी कि मान्यवर मुम्बई जाने की आवश्यकता नही है हम रामोजी राव फ़िल्म सिटी हैदराबाद चलते है। हो सकता है आपका प्लान हो वहाँ जाने का यदि हो तो दो दिन का प्लान बनाकर जाइयेगा तभी आपको अंदाज़ा लगेगा कि आपकी फ़िल्म नगरी उससे बेहतर कैसे बने।
एक दिन में तो आप अपनी कार से भी घूमेंगे तो भी आप रामोजी राव पूरा नही देख समझ पायेंगे। आपको लग रहा होगा मैं रामोजी राव का पीआर तो नही कर रहा हूँ जी नही मैं वहाँ दो बार ही गया हूँ लेकिन फिल्मों से जुड़ा होने के कारण यह कह सकता हूँ किसी को कोई फ़िल्म बनानी हो तो वो अपने स्टार लेकर वहाँ आये और जब वापस जाये तो आपको सिर्फ फ़िल्म रिलीज करनी है।
एक ही जगह पर जब आपको हर चीज मुहैया हो तो आसानी तो हो ही जाती है। वैसे भी हैदराबाद फ़िल्म उद्योग बहुत व्यवस्थित है जिसका लाभ भी यहाँ शूटिंग करने वालो को मिलता है । रामोजी राव ने खुद को उत्कृष्ट पर्यटन स्थल भी बना दिया है वहाँ पर्यटकों के लिए बहुत से विकल्प है मनोरंजन के लिये। लोग तो इसी बात से खुश हो जाते है कि शाहरुख खान ने फलाँ फ़िल्म के लिये यहाँ शूटिंग की थी या नसीरूद्दीन और विद्या बालन की फ़िल्म डर्टी पिक्चर के गाने की शूटिंग इस पार्क में हुई थी और यह सभी शूटिंग वाली जगह आप उनकी चलती बस से देख रहे होते है।
जब हम गये तो बस ने हमें बाहुबली के सेट पर छोड़ दिया फ़िल्म के सेट को तोड़ा नही गया था। वहाँ फ़िल्म से जुड़े तमाम कटआउट रखे थे बहुत सी शूटिंग वाले द्रश्य सेट भी छोड़ दिये गये थे उनको देखकर और फ़ोटो खींच और खिंचवा कर सब इतने खुश थे जैसे हम फ़िल्म का हिस्सा हो। हालाँकि मैं बतौर पर्यटक रामोजी राव में देखे जाने वाले विषयों से बहुत प्रभावित नही था लेकिन एक आम पर्यटक के लिए वहाँ बहुत कुछ है। मेरे लिए तो सबसे अच्छी जगह उनका रेस्टोरेंट था जिसका खाना लाज़वाब था ।
मैं यह सब इसलिए लिख रहा हूँ मुख्यमंत्री महोदय जिससे आपको अंदाजा हो कि सिर्फ फ़िल्म नगरी बनाने से काम नही चलने वाला revenue भी तो आना चाहिए। आपको हमारी फ़िल्म नगरी को सफल बनाने के लिए रामोजी राव से सलाह लेनी चाहिए हॉलीवुड स्टूडियो देखने जाना चाहिए। ऐसी एजेंसियों को sign करना चाहिए जिनका अगले 50 वर्षो में फ़िल्म और ओटीटी या अन्य कैसे बदलाव आयेंगे उनपर कुछ vision हो।
तेजी से बदलते समय के बदलाव को देखते हुए सबसे जरूरी जरूरत है विश्वस्तरीय editing स्टूडियो बनाने की। मुझे ऐसा लगता है आने वाले 50 वर्षों में सर्वश्रेष्ठ फिल्में कम्प्यूटर या उससे भी अधिक उसी तरह की आने वाली तकनीक पर बनेंगी। आज भी 60/70% फिल्में ग्राफिक्स पर ही बनती है।
यह ठीक है कि आने वाले 8/10 वर्ष नेटफ्लिक्स अमेजन यानि OTT जैसे प्लेटफार्म का रहेगा और उसके बाद कुछ नई तकनीक देखने के लिए कुछ नए तरीके ईजाद किये जायेंगे। इसलिए बहुत बड़े स्टूडियो की जरूरत भविष्य में न पड़े लेकिन ग्राफिक्स और editing स्टूडियो इतने सुसज्जित होने चाहिए कि उनमें बदलाव सम्भव हो।
जो भी स्टूडियो बनाये वो ग्रीन कवर हो जैसे किसी ने मुझे बताया कि लॉर्ड्स का मैदान ऐसा है कि कही भी खड़े हो कर बैटिंग करो वो पिच अपने आप बन जायेगी।
आप हमारी फ़िल्म नगरी में आधुनिक lights आधुनिक कैमरे व अन्य आधुनिक equipments की सहूलियत उपलब्ध करवाये ऐसी व्यवस्था करे कि फ़िल्म या OTT का जो भी निर्माता आये वो सिर्फ अपने कलाकार लेकर आये और जब जाये तो उसे सिर्फ release करने भर की मशक्कत करना बाकी रह जाये।
हमारी फ़िल्म नगरी में सबसे अधिक शुरुआती दिक्कत technicians की आयेगी चाहे हम फ़िल्म बनाये या OTT material, हमें उनके लिए मुम्बई पर आश्रित रहना पड़ेगा। उसका solution थोड़ा लम्बा है लेकिन विकल्प यही है। हमें विश्वविद्यालय की जरूरत नही है बल्कि 10वीं/ 12वीं क्लास तक के छात्रों के लिए 3 - 6 - 9 और 12 महीने के short courses की जरूरत है सिर्फ practical course No theory,साथ ही जो भी शूटिंग हो उसमे उन्हें अनुभव सीखने का मौका मिलना चाहिए, साथ ही उन विद्यार्थियों को यह सुविधा भी मिलनी चाहिये कि यदि कोई नई तकनीक आये वो उन्हें सीखने को फ्री में मिलनी चाहिये। जिससे उनका आधुनिकता के साथ तारतम्य बना रहे।
इसके अतिरिक्त सबसे जरूरी है रहने के लिए फाइव स्टार थ्री स्टार और स्टार रहित होटलों की वो भी फ़िल्म नगरी के अंदर ही। लग्जरी कार और लग्जरी बसों की सुविधा भी बहुत जरूरी है। जिससे फ़िल्म सितारे और शूटिंग स्टाफ के आने जाने के समय की बचत हो। आखिरकार समय की ही तो कीमत है।
हरेक फ़िल्म के शूटिंग स्टाफ का life insurance compulsory हो, एक हस्पताल हो बेसिक सुविधाओं से युक्त और फ़िल्म नगरी के पास ही किसी बड़े हॉस्पिटल से करार हो जिससे सुविधाएं तुरन्त मुहैया हो सके।
पर्यटन स्थल के रूप में फ़िल्म नगरी में आधुनिक आकर्षण जोड़े जाये जिनका संबन्ध फिल्मों से ही हो, और सबसे बड़ी बात पर्यटन किसी के लिए भी free न हो चाहे कोई अधिकारी या नेता का परिवार हो वरना इण्डियन एयर लाइन्स बनने में ज्यादा समय नही लगेगा।
मुख्यमंत्री महोदय फ़िल्म नगरी को सफल बनाने के लिए किसी फिल्म स्टार फ़िल्म सेलिब्रिटी या फ़िल्म निर्माता की आपको जरूरत नही है आप सुविधाएं ऐसी दीजिये कि फ़िल्म के लोग मजबूर हो जाये आपकी फ़िल्म नगरी में शूटिंग के लिये। रामोजी राव से अच्छा उदाहरण और क्या मिलेगा हमें। किसी को भी किसी भी तरह का स्टूडियो बनाने के लिए जगह मत बाँटियेगा यदि आपने ऐसा किया तो दूसरी नोयडा फ़िल्म सिटी जैसा हश्र होने से कोई नही रोक सकता।
उत्तर प्रदेश में फिल्मों की शूटिंग और पैसा--
बात हो ही रही है तो लगे हाथों मैं उत्तर प्रदेश में होने वाली फिल्मों को जो रेवड़ी आप बाँट रहे है उस पर भी कर लेता हूँ। आपकी यानि फ़िल्म बन्धु की पहली शर्त होती है जिस फ़िल्म की शूटिंग आपके यहाँ हो उसके अनुसार उसे आर्थिक सुविधा दी जाती है उसके अलावा UP में आप फ़िल्म को टैक्स फ्री भी कर देते है कभी कभी,
मेरे विचार से हमारे प्रदेश में सबसे पहली priority कहानी होनी चाहिये आप 2 करोड़ रुपये किसी ऐसी फिल्म को देते है जो उत्तर प्रदेश के किसी शहर को गुंडों आतंकवादियों का अड्डा बना दिखाते है। आप कह सकते है यह हकीकत है लेकिन हकीकत के लिए सरकार दो करोड़ देती है क्या।
हम ऐसी कहानियों का चुनाव कर सकते है जो हमारे शहरों और प्रदेश के लिए सार्थक हो। क्या हमारे प्रदेश में ऐसे लोग नही हुए है जिन्होंने देश या विश्व मे अपना नाम रोशन न किया हो। गुंडों आतंकवाद को बढ़ावा देने वाली फिल्मों की बजाय हम किसी ऐसे खिलाड़ी पर फ़िल्म नही बना सकते जिसने प्रदेश का नाम रोशन किया हो फिर उस फिल्म को चाहे अधिक ही पैसा क्यों न देना पड़े।
अवधि, ब्रज, बुंदेली और भोजपुरी फिल्मों को बढ़ावा देना अच्छी बात है लेकिन उसके लिए फ़िल्म अच्छी और सार्थक हो तो बेहतर है यदि सरकार किसी ऐसी प्रादेशिक भाषा की फ़िल्म को पैसा देती है जैसी हर तीसरी फिल्म बन रही है तो हम इन प्रादेशिक भाषा की फिल्मों को बढ़ावा नही दे रहे बल्कि सिर्फ पैसा दे रहे जिसका कोई औचित्य नही है।
हम पर्यटन को बढ़ावा देने के अनुसार भी फिल्मों का निर्माण करवा सकते है उदाहरण के तौर पर गढ़ गंगा एक ऐसा क्षेत्र है जिसे सरकार पर्यटन स्थल के तौर पर स्थापित कर सकती है। फिल्मों और OTT प्लेटफार्म के लिए इस क्षेत्र को ध्यान में रखकर कहानी लिखी जा सकती है फ़िल्म बनाई जा सकती है। ऐसा ही उन क्षेत्रो को ध्यान में रख कर किया जा सकता है जिन्हें पर्यटन के तौर पर उभारना हो।
बरेली की बर्फी जैसी मनोरंजक फिल्मों को बढ़ावा मिलना चाहिये हर शहर की अपनी एक कहानी होती है उसमें कुछ ऐसी विशेषताये होती है जिन्हें कहानी में पिरोया जा सकता है। हो सकता है इस तरह की कोशिशों में शुरू में समय अधिक लगे लेकिन इन फिल्मों का result बेहतर होगा ऐसी संभावना अधिक है और प्रदेश की जनता का जो पैसा सरकार निर्माताओं को देती है उसकी सार्थकता भी होगी।
मुख्यमंत्री महोदय मुझे पता है आपके पास या किसी के पास भी इतना समय नही होगा जो इतना लम्बा खुला पत्र पढ़े लेकिन मुझे जो लिखना था वो तो मैं लिखी ही सकता हूँ। कोई पढ़े या न पढ़े।
हरीश शर्मा
गोवा से
हरीश जी क्या बात बहुत अच्छा और सार्थक लेख लिखा आपने। इस पत्र को आप ईमेल से अतिरिक्त मुख्य सचिव श्री अवनीश कुमार अवस्थी जी को भी भेजे।संभव हो सके तो मिल भी सकते है।
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