Monday, September 24, 2018

गुमनाम नायकों की गौरवशाली गाथाएँ - विष्णु शर्मा

गुमनाम नायकों की गौरवशाली गाथाएँ - विष्णु शर्मा


मैंने किताब तो लिखी है लेकिन समीक्षा नही यह मेरी पहली कोशिश है जैसी लगे सलाह दीजियेगा ।

गुमनाम नायकों की गौरवशाली गाथाएँ के लेखक विष्णु शर्मा मेरे बहुत पुराने सखा है दिल्ली में मेरे संघर्ष के समय से।
कुछ महीनों पहले यह किताब मैंने #Amazon से मंगाई थी चाहता तो उनसे कह कर भी पा सकता था लेकिन फिर यह समीक्षा लिखते समय हमेशा यह बात दिमाग में रहती कि अच्छा ही लिखना है ।

प्रभात पेपरबैक्स के द्वारा यह किताब प्रकाशित की गई है आज के समय में देशभक्ति की किताबें भी यह प्रकाशित कर सकते है उसके लिये बधाई लेकिन शिकायत भी कि यह किताब अब अमेज़न या फिल्पकार्ट पर उपलब्ध नही है कृपया ध्यान दे।

किताब बहुत शानदार है हलांकि जिन गुमनाम नायकों के विषय में लेखक ने लिखा है उनमें से बहुत से नायकों को मैंने हमनें पढ़ा है अपनी 8वीं कक्षा तक की किताबों में लेकिन फिर से पढ़ने से सब पढ़ा ताजा हो गया। भाषा बहुत सरल है कई पाठक कह सकते है कि हिन्दी में भी कुछ सरल कठिन हो सकता है उनके लिये इतना ही कि हिन्दी कठिन नही यदि आप उससे प्यार करें तो यह आपको अपनाने में देर नही करेगी।

समीक्षा को आगे बढ़ाते है किताब में कुल 25 नायकों के विषय में बताया गया है नायक इसलिये कि पढ़ने के बाद मेरे लिये यह सभी गुमनाम नही रह गये ।

पहले नायक है बाघा जतिन शीर्षक इतना जबरदस्त है राष्ट्रपिता गाँधी जी नही ये होते हो जाता वह प्लान कामयाब ।लेकिन साथी ने गद्दारी नही की होती , तो देश को न गांधी की न बोस की । उनकी मौत ने ही तमाम क्रांतिकारी पैदा किये धन्य है बाघा।

अफसोस हुआ पढ़कर कि तमाम नायकों को अपनी जान से हाथ धोना पड़ा या योजना फलीभूत नही हुई क्योंकि जयचंद हमेशा रहे जयचंद यानि गद्दार।

अंग्रेजों के राज को 5 साल पहले खत्म करने वाले में कितना दम होगा लेकिन आपको पता चले कि वो एक 72-73 साल की महिला थी तो आप किताब जरूर पढ़ना चाहेंगे। जी हाँ मातंगिनी हाजरा नाम था उस वीरांगना का ।

एक से एक नायक की गाथा कोमारम भीम,बाबा गुरदित सिंह,18 साल का अनंत लक्ष्मण, विष्णु पिंगले, वासुदेव बलवंत फड़के इन्हें मैंने 5 वी कक्षा में पढ़ा था,उधम सिंह की कहानी, सिस्टर निवेदिता ,श्यामजी कृष्ण वर्मा उन्हें पढ़िये कि सिर्फ देश में ही नही विदेशों में भी आजादी की जद्दोजहद जारी थी लंदन में वर्मा जी ने इण्डिया हाउस खोला था ।जो केंद्र था भारत को आजाद कराने का। 2003 में मुख्यमंत्री रहते नरेन्द्र मोदी इनकी और पत्नी की अस्थियाँ भारत लेकर आये थे। 

अन्य बहुत से नायक के विषय में आप पढ़ेंगे तो कभी रोना आयेगा कभी गुस्सा आयेगा कभी उनकी मजबूरी पर क्षोभ होगा और गद्दारो को तो आप सीधे नरक में डाल देंगे।

विशेष बात जो किताब पढ़ने से पता चली वो यह कि किसी न किसी ढंग से स्वामी विवेकानंद, स्वामी दयानंद सरस्वती आदि महापुरुष प्रेरणास्रोत रहे तमाम क्रांतिकारियों के ।

दूसरी बात पता चली कि 1914 प्रथम विश्वयुद्ध के समय गाँधी जी भारतीयों की भर्ती में लगे थे कि यह लोग इंग्लैंड की सेना के लिये लड़े उस समय गाँधी को सार्जेंट भी कहा जाने लगा था।

क्रांतिकारीओ का झगड़ा गाँधी जी से था कि जब प्रथम विश्वयुद्ध और दूसरे विश्वयुद्ध के समय अच्छा मौका था देश को आजाद कराने का लेकिन गाँधी अंग्रेज़ो की मजबूरी का लाभ उठाने के सख्त खिलाफ थे।

लेखक विष्णु शर्मा इतिहास के छात्र रहे है उनकी किताब पढ़ने के बाद उनसे उम्मीद है कि वह गाँधी पर किताब लिखें कि देश के लिये यदि गाँधी यह करते तो बेहतर होता।

किताब में सिर्फ आजादी के मतवालों की कहानी ही नही है बल्कि अटल जी को निर्दलीय खड़े होकर हराने वाले हाथरस के राजा की कहानी भी किताब को पढ़ने की जिज्ञासा बढ़ाती है।

कितने लोग जज जगमोहन लाल सिन्हा का नाम जानते है जिन्होंने निडरता से ताकतवर प्रधानमंत्री को उनकी कुर्सी से बेदखल होने को मजबूर कर दिया। मैं बता सकता हूँ लेकिन जैसा फिल्मों में होता है कि अंत पता चल गया तो फ़िल्म देखने का मजा ही खत्म इसलिये किताब पढ़िये।
विष्णु शर्मा ने विषय ही ऐसा चुना है जिसके लिये उनकी सिर्फ तारीफ ही कि जा सकती है।तारीफ इसलिये भी कि एक से बढ़कर एक क्रांतिकारी पर इतना ही लिखा कि रोचकता बनी रहे वरना वो किताब को अधिक मोटा भी कर सकते थे लेकिन उन्होंने कम शब्दों में सब कुछ कह दिया है यह खूबी संभवतः उनके पत्रकारिता के अनुभव की वजह से संभव हो पाई।

आज की पीढ़ी को यह किताब पढ़नी चाहिये साथ ही नेताओं को भी, उन्हें पता तो चले कि आजादी कितनी कठिन परिश्रम से मिली है।

हर नायक पर फ़िल्म बन सकती है फिल्मी आदमी हूँ इसलिये कह रहा हूँ  कहानी तैयार है सिर्फ फिल्मी जामा पहनाना है।

विष्णु जी लिखते रहे कोई तो अलख जगाये रखे अपने इतिहास की 

शुक्रिया

हरीश शर्मा

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