धोनी को फिल्में दिखाने की जिम्मेदारी थी मेरी-
कल कप्तान कूल ने सन्यास की घोषणा की तो मेरे ज़ेहन में विश्वकप का हेलीकॉप्टर शॉट सबसे पहले आया। सचिन की तरह यदि उन्होने भी घोषणा की होती तो मैच के बाद पूरा स्टेडियम पूरा भारत धोनी धोनी के शोर से गूँज जाता। लाखों करोड़ों लोगों की आँखे नम होती।
लेकिन धोनी तो हमेशा कुछ अलग ही करते है मैदान के अंदर भी मैदान के बाहर भी। इस बार भी इंस्टाग्राम पर अलग ही अंदाज में उन्होने आई पी एल के अतिरिक्त सभी किन्तु परन्तु पर विराम लगा दिया।
सन्यास की घोषणा के बाद लाखों लेख लिखे जा चुके है मैं ऐसा क्या लिखूं जो अलग हो जिसकी चर्चा कम हुई हो। तब मुझे लगा मुझे अपनी मुलाकातें लिखनी चाहिए जो अलग ही थी।
धोनी के बारे में सबसे पहले लगभग 2002/3 में मेरे साथी मित्र दीपक गुप्ता ने मुझे बताया था उनके पापा गोपाल गुप्ता इंडियन एयर लाइन्स की क्रिकेट टीम से जुड़े हुए थे उन्होंने बिहार टीम से खेलने वाले युवा धोनी की बल्लेबाजी के किस्से पढ़े और सुने थे
उन्होंने एयर इंडिया टीम मैनेजर जय सिंह को यह बात बताई उसके बाद धोनी एयर इंडिया टीम का हिस्सा बने। उसी टीम में धोनी के मित्र बाद में धोनी का तमाम व्यवसायिक कार्य देखने वाले अरुण पांडेय भी खेलते थे।
गोपाल गुप्ता को लगता था यह लड़का अगले दो तीन साल में भारत के लिए न सिर्फ खेलेगा बल्कि एक दिन कप्तान भी बनेगा।
मुझे लगा अतिउत्साह में दीपक के पापा बोल गये है लेकिन 2004 में जब धोनी की खबरें आने लगी तो मुझे गोपाल गुप्ता की बात सही लगने लगी हालांकि गोपाल गुप्ता जी अब इस दुनियां में नही है लेकिन उनकी भविष्यवाणी सच साबित हुई।
दिसम्बर 2004 के बाद धोनी एक ऐसा सितारा बनकर उभरा जिसका कोई सानी नही। जिसने ऊंचाइयों की उन मंजिलों को छुआ जो कुछ ही लोगो के नसीब में होती है।
मेरी मुलाकात माही से जून 2006 में हुई थी पहली बार दर असल मेरे पास मेरे मित्र अतुल गंगवार का फोन आया माही को अपने कुछ दोस्तों के साथ फ़िल्म फिर हेराफेरी देखनी है क्या आप कुछ ऐसी व्यवस्था कर सकते है लोग अधिक न हो ।
मेरे पास इंदिरापुरम में मल्टीप्लेक्स जेम शिप्रा का पीआर का काम था मेरे मित्र राहुल शर्मा उस मल्टीप्लेक्स को मैनेज करते थे मैंने उनसे बात की यह भी बताया कि कोई मीडिया नही कोई प्रचार नही फिर भी वो तुरंत तैयार हो गए।
राहुल शर्मा ने नये बने जेम लाउन्ज को हमारे लिए खोल दिया इस लाउन्ज में जाने का रास्ता अलग से ही था उसमें करीब 24 लक्जरी सीट थी। तय समय से धोनी अपने कुछ मित्रों के साथ आये। मैंने अपने फोटोग्राफर मित्र उमेश वर्मा को बुला लिया था।
पहले लाउन्ज में बैठाकर बातचीत हुई फ़ोटो हुए अरुण पांडेय भी साथ थे निशान्त भी थे जो स्पोर्ट्स मैनेजमेंट कंपनी चलाते थे धोनी और अरुण के मित्र थे। तीन चार मित्र ओर थे जिनके विषय में मुझे याद नही।
धोनी उस समय भी शांत ही रहते थे अभिवादन का उत्तर भी मुस्कराहट से ही देते थे। मैंने पूछा था कैसी फ़िल्म पसंद करते है बोले हर तरह की फ़िल्म अच्छी लगती है लेकिन कॉमेडी की फ़िल्म देखना अधिक अच्छा लगता है। किशोर कुमार के गाने मुझे अच्छे लगते है जॉन अब्राहम की तरह मोटरसाइकिल चलाना उन्हें पसंद है जॉन के अच्छे मित्रों में है। हालांकि उस समय तक उनके पास बहुत बाइक नही थी।
जेम शिप्रा में मैंने माही को करीब चार फिल्म दिखाई थी वहाँ की सुरुचिपूर्ण व्यवस्था से वो बहुत खुश होते थे क्योंकि जिस दिन वो फ़िल्म देखते थे पूरा जेम लाउन्ज सिर्फ हमारे लिए होता था। आज भी जेम शिप्रा से उस समय जुड़े लोग धोनी के व्यवहार से बहुत प्रभावित थे है और रहेंगे।
राहुल शर्मा जो अब भोपाल में एक मॉल का प्रबंधन देखते है ने फ़ोन पर मुझे बताया जब माही तीसरी बार आये जब तक वो चेहरे और नाम से पहचानने लगे थे तब मैंने उनसे एक प्रश्न किया था कि आप मैदान के बाहर ही कूल रहते हो या मैदान में भी ऐसे ही शान्त रहते है जवाब में धोनी ने कहा राहुल जी व्यक्ति की फितरत थोड़ी बदलती है मैं जैसा हूँ वैसा ही हूँ मैदान में भी मैदान के बाहर भी।
राहुल ने मुझे कहा तब मुझे नही पता था कि भविष्य में इसी शान्त स्वभाव की वजह से वो विश्व क्रिकेट में कैप्टेन कूल के नाम से प्रसिद्ध होंगे।
जेम शिप्रा के अतिरिक्त एक बार हमने धोनी और मित्रों के लिए सितम्बर 2006 में फ़िल्म खोसला का घोंसला फन सिनेमा वैशाली में दिखाई थी रात 9 बजे का शो था भीड़ थी लेकिन ऊपर की 4 पंक्तियाँ सिर्फ हमारे लिए रोकी गई थी। हमें बताया गया धोनी और साथी आधे घण्टे देर से आयेंगे तो मैंने खुद हॉल में उपस्थित लोगों को सच बताया क्या आप लोग इन्तजार कर सकते है धोनी का।
मैंने कहा मिलवा तो नही सकता लेकिन धोनी सबको हाथ हिलाकर अभिवादन करेंगे। करीब 60 लोग इंतजार करने को तैयार हो गये। धोनी अपने मित्रों के साथ जिनमें दो तीन लड़कियाँ भी थी हमें नही पता उनमें साक्षी भी थी या नही,
हमें इस बात से कोई लेना देना भी नही था। हम तो दो लोगो धोनी और अरुण पाण्डेय को ही जानते थे। चूंकि अतुल गंगवार अरुण और मेरे मित्र थे तो वो साथ होते ही थे।
धोनी उस रात 9.30 बजे पहुँचे जब उन्हें बताया आप लोगो के कारण 60 लोग आपका इंतजार कर रहे है तो सबसे पहले उन्होंने उन सब लोगो से कहा हमारे कारण आपको देरी हुई है we are sorry अब सब साथ साथ फ़िल्म देखते है। मध्यांतर में धोनी ने कुछ लोगो के साथ फोटो भी खिंचवाये और फ़िल्म खत्म होने के बाद फन सिनेमा के सभी स्टाफ के साथ फोटो खिंचवा कर सबको खुश कर दिया।
उसके बाद माही व्यस्त हो गए क्रिकेट में ऊँचे और ऊँचे होते चले गये। फिर हमारी मुलाकात नही हुई लेकिन अरुण पाण्डेय से कभी कभार बातचीत हो जाती थी।
2012 में कभी मैं मुम्बई से दिल्ली जा रहा था जब एयरपोर्ट लाउन्ज में अरुण पाण्डेय और माही से मुलाकात हुई। माही आई पैड में व्यस्त थे मैंने अरुण से हाथ मिलाया। माही ने मुझे देख अरुण से पूछा कौन तब उन्हें बताया तो उन्हें याद आया। वो और हम एक ही फ्लाइट में थे हैलो हाय बाय हुई। उसके बाद हमारी मुलाकात नही हुई लेकिन मुझे खुशी है भारत के इस महान कप्तान और खिलाड़ी से मेरी छोटी सी ही सही लेकिन अच्छी मुलाकातें रही।
मुझे उम्मीद है माही सन्यास लेने के बाद भी कुछ अतरंगी काम ही करेंगे सभी रिटायर्ड खिलाड़ियों से एकदम अलग।
हरीश शर्मा